ये कैटलॉग तैयार करना भी बेहद मुश्किल काम है कि डोनाल्ड ट्रम्प के चार साल राष्ट्रपति रहने के दौरान हमने क्या-क्या गंवाया। जब मैं इन बातों को लिख रहा हूं तब तक कोरोनावायरस के चलते 2 लाख 25 हजार अमेरिकी नागरिक मौत का शिकार बन चुके हैं। महीनों से हमारे यानी अमेरिकी बच्चे स्कूल नहीं गए हैं। बहुत जल्द देश का बड़ा हिस्सा थैंक्सगिविंग भी सेलिब्रेट नहीं कर पाएगा।
बच्चों को परिवार से जुदा कर दिया
ट्रम्प एडमिनिस्ट्रेशन ने क्रूर फैमिली सेपरेशन पॉलिसी बनाई। बहुत मुमकिन है कि इसका शिकार बने 545 बच्चे अब कभी अपने पैरेंट्स से न मिल पाएं। अग्रणी लोकतंत्र के तौर पर अमेरिका अपना रुतबा और सम्मान खो चुका है। हमने सुप्रीम कोर्ट की जज रूथ बेंदर गिन्सबर्ग को खोया। सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद यह पहला मौका जब इतने अमेरिकियों ने नौकरियां गंवाईं। इनके साथ उन सांस्कृतिक घटनाओं को हुआ नुकसान भी जोड़ लीजिए, जो ट्रम्प के दौर में हुआ।
पिछले चार साल का अनुभव
जब मैं पिछले चार साल अपनी तरह से देखता हूं तो उसमें ऐसा लगता है कि जैसे इस प्रेसिडेंट का दौर किसी ब्लैकहोल की तरह रहा। अपनी तरह के और अलग नुकसान हुए। हर वक्त यह महसूस हुआ कि ट्रम्प अपनी तरह की बातें गढ़ते हैं और तारीफ किसी और चीज की करते हैं। मुझे लगता है कि पिछले चार साल में काफी बेहतर हुआ होगा। लेकिन, इसमें से ज्यादातर का फायदा मुझे नहीं हुआ। क्योंकि, मैं अपने फोन में ही बिजी रहा। ये उस आदमी के साथ होता है जो पॉलिटिक्स में जिंदगी खोजता रहा। ऐसा मैं अकेला नहीं हूं।
कई किताबें लिखी गईं
इस दौर में कई किताबें लिखी गईं। ट्रम्प पर उनके दौर का जिक्र करते हुए। पुलित्जर प्राइज विनर आलोचक कार्लोस लोजदा कहते हैं- ट्रम्प के दौर में कई राजनीतिक किताबें लिखी गईं। मैंने भी इनमें से कई किताबें पढ़ीं और उनकी तारीफ भी की। 2015 के बाद से फिक्शन पर नॉन फिक्शन भारी हो गया। यह बदलाव ट्रम्प के सत्ता में आने से पहले ही नजर आने लगा था। लेकिन, चार साल में तो यह चरम पर पहुंच गया। एनपीडी की क्रिस्टीन मैक्लीन कहती हैं- ट्रम्प ने हमारे दिमाग में जगह बना ली और वहां इतनी भीड़ है कि हम कुछ और सोच नहीं पाते।
फिक्शन पर जोर
एक लेखक पूछते हैं- यह सब क्या चल रहा है और कब खत्म होगा। यह तो उससे बहुत अलग है जिसकी हम बतौर अमेरिकी कल्पना करते आए हैं। हम दुनिया में रहना चाहते हैं लेकिन अब यह सोच जैसे सस्पेंड हो रही है। ट्रम्प के पहले मैंने कभी नहीं सोचा कि जिंदगी का यह हिस्सा फास्ट फॉरवर्ड हो और गुजर जाए। इस दौर में टीवी ड्रामा ही बेहतर हैं क्योंकि सच्चाई बहुत जहरीली होती जा रही है। तब बहुत अच्छा लगता जब आर्ट और पॉलिटिक्स में सामंजस्य हो। लेकिन, जब सियासित आपको चेतावनी देने लगे तो संस्कृति भी मुश्किल में दिखाई देने लगती है। इस दौर में आर्ट तबाह हुआ। इसके लिए ट्रम्प जिम्मेदार हैं।
संस्कृति का दम घुट रहा है
चाहे दक्षिणपंथी हों या वामपंथी। ये मिले हुए हैं और इस दौर में सांस्कृतिक तौर पर दम घुट रहा है। परंपरावादी डेमोक्रेट्स का मजाक उड़ाते हैं और वे ट्रम्प के साथ हैं। यह ठीक वैसे ही है जैसे किसी के घर में आग लगाकर हम हंसने लगें। उसके जख्मों पर नमक छिड़कें। ट्रम्प के दौर में क्रिएटिविटी के लिए जगह नहीं बची। इसके लिए राष्ट्रपति जिम्मेदार हैं, वे लोग नहीं जिन्होंने इसका खामियाजा भुगता।
रोशनी की गुंजाइश नहीं छोड़ी
ट्रम्प का दौर कला यानी आर्ट के लिए अच्छा नहीं रहा। यह कल्पना के लिए भी खराब वक्त था। लोगों को अब आगे आना होगा। इस परेशानी से बाहर निकलने की कोशिश करनी होगी। इसके लिए ज्यादा ताकत और ऊर्जा लगानी होगी। ट्रम्प ने रोशनी को रोका है। जब वो चले जाएंगे तब हम देख पाएंगे कि हमने कितना और क्या खोया है।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://bit.ly/3jIIVYl
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
WE SHARE YOU THE LATEST NEWS.
YOU CAN COMMENT IN WHAT WAY IT WOULD BE EASIER TO SHARE THE NEWS AND WILL BE MORE COMFORTABLE TO YOU