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शुक्रवार, 31 जुलाई 2020
इलाहाबाद हाईकोर्ट और अधीनस्थ अदालतों के सभी अंतरिम आदेश 31 अगस्त तक बढ़े https://ift.tt/2DzNWCZ
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सुशांत की मौत की सीबीआई जांच नहीं होगी, राजस्थान में वीडियो से बवाल; इन 5 राशि वालों को आज थोड़ा संभलकर रहना होगा https://bit.ly/336CJom
तारीख है 31 जुलाई और दिन है शुक्रवार का। अगर कोरोनावायरस नहीं आया होता, तो आज नई फिल्म रिलीज होती। खैर, आज हॉटस्टार पर कुणाल खेमू और रसिका दुग्गल की लूटकेस फिल्म रिलीज होगी। ये कॉमेडी फिल्म है। कोरोना के टाइम में तो देख ही सकते हैं। ये तो हो गई फिल्म की बात। अब जल्दी से कुछ खबरों से भी गुजर लेते हैं।
1. अयोध्या में क्या चल रहा है?
राम मंदिर निर्माण के लिए 5 अगस्त को भूमि पूजन होना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसमें शामिल होंगे। लेकिन, पूजन होता, उससे पहले ही यहां कोरोना पहुंच गया है।
खबर आई है कि रामलला मंदिर के प्रधान पुजारी आचार्य सतेंद्र दास के शिष्य प्रदीप दास कोरोना संक्रमित हो गए हैं। प्रदीप दास रामलला मंदिर के सहायक पुजारी भी हैं। सिर्फ पुजारी ही नहीं, बल्कि राम जन्मभूमि में तैनात 16 पुलिसवालों के भी कोरोना पॉजिटिव होने की खबर है।
हालांकि, पुजारी और पुलिसवालों के कोरोना पॉजिटिव होने की बात यहां के सीडीओ प्रथमेश कुमार खारिज कर चुके हैं।
2. राजस्थान के बवाल में नया क्या?
अब बात राजस्थान की। 20 दिन से ज्यादा हो गए, लेकिन यहां का बवाल शांत होता नहीं दिख रहा है। या तो सरकार गिरेगी? या तो बचेगी? तभी शांत होगा। खैर, इस घमासान के बीच राजस्थान विधानसभा के स्पीकर सीपी जोशी का एक वीडियो वायरल हो रहा है। इस वीडियो में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत भी हैं। असल में ये वीडियो दोनों की बातचीत का है।
इस वायरल वीडियो में स्पीकर सीपी जोशी मुख्यमंत्री के बेटे वैभव से कह रहे हैं 'मामला टफ हो गया है।' फिर वैभव कहते हैं 'राज्यसभा के वक्त ही खबरें आ गई थीं। जिस तरह से माहौल खराब हो रहा है। इन्होंने 10 दिन राज्यसभा चुनाव के निकाले, फिर वापस।'
वैभव को सीपी जोशी जवाब देते हैं '30 आदमी निकल जाते हैं, तो आप कुछ नहीं कर सकते। हल्ला करते रहते। वो सरकार गिरा देते। अपने हिसाब से उन्होंने कॉन्टैक्ट करके करवा लिया है। बाकी दूसरे के बस की बात नहीं है।'
3. सुशांत की मौत का मामला कहां तक पहुंचा?
सुशांत सिंह राजपूत की मौत को डेढ़ महीने से ज्यादा हो गए और हर दिन इस मामले में कुछ न कुछ नया मोड़ आ ही रहा है। अब सुप्रीम कोर्ट ने सुशांत की मौत की सीबीआई जांच कराने से साफ इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट में अल्का प्रिया ने पीआईएल लगाई थी और मांग की थी कि इसकी जांच सीबीआई करे। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया कि पुलिस को उनका काम करने दीजिए।
उससे पहले महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने भी कहा कि इस मामले की सीबीआई जांच की जरूरत नहीं है। मुंबई पुलिस इसकी जांच में सक्षम है।
उधर सुशांत के पिता केके सिंह का कहना है कि उन्हें मुंबई में हो रही जांच पर भरोसा नहीं है। इसलिए वो चाहते हैं कि पटना पुलिस भी मामले की जांच करे।
कहा तो ये भी जा रहा है कि सुशांत ने मुंबई में आत्महत्या की थी। ऐसे में पटना में जो एफआईआर दर्ज हुई, वो जीरो एफआईआर मानी जाएगी और जांच मुंबई पुलिस ही करेगी।
4. मणिपुर में असम राइफल्स पर किसने हमला किया?
ये खबर बुरी है। दरअसल, 29 जुलाई की शाम पौन 7 बजे मणिपुर में असम राइफल्स के जवानों पर हमला हुआ। इस हमले में 3 जवान शहीद हो गए। 5 जख्मी भी हुए हैं, जिन्हें सेना के अस्पताल में भर्ती किया गया है।
ये हमला जहां हुआ है, वो जगह भारत-म्यांमार सीमा से बस 3 किमी दूर है। हमला खोंगताल में हुआ, जो मणिपुर के चंदेल जिले में पड़ता है। अब जो पता चला है, वो ये कि असम राइफल्स के 13 जवानों की टुकड़ी अपनी पोस्ट पर लौट रही थी। रास्ते में आईईडी ब्लास्ट हो गया। इसके बाद घात लगाकर बैठे उग्रवादियों ने फायरिंग कर दी।
ये हमला किसने किया? अभी तक पता नहीं चला है। हालांकि, शक है कि इस हमले के पीछे मणिपुर का लोकल्स ग्रुप पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का हाथ हो सकता है।
5. कब होगी नेशनल स्पोर्ट्स अवॉर्ड सेरेमनी?
कोरोनावायरस का असर खेलों पर तो पड़ा और अब अवॉर्ड सेरेमनी पर भी पड़ने वाला है। एक खबर आई है कि इस साल 29 अगस्त को जो नेशनल स्पोर्ट्स अवॉर्ड सेरेमनी होनी थी, उसकी तारीख कोरोना की वजह से एक या दो महीने आगे बढ़ सकती है। हालांकि, राष्ट्रपति भवन की तरफ से अभी जवाब आना बाकी है।
29 अगस्त को हॉकी के खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद की जयंती है। इसी दिन राष्ट्रीय खेल दिवस भी होता है। इसलिए इस दिन राष्ट्रपति राजीव गांधी खेल रत्न, अर्जुन, द्रोणाचार्य और ध्यानचंद अवॉर्ड देते हैं। ये सेरेमनी भी राष्ट्रपति भवन में ही होती है।
6. कैसा होगा आज का दिन?
जाते-जाते सबसे जरूरी बात कि आज का राशिफल क्या कहता है? तो आज शुक्रवार को ज्येष्ठा नक्षत्र में चंद्रमा होने से चर और इंद्र नाम के दो शुभ योग बन रहे हैं। इनका असर मेष, वृषभ, सिंह, वृश्चिक, मकर, कुंभ और मीन राशि वाले लोगों पर पड़ेगा। इसका फायदा भी है। इन 7 राशि वाले लोगों को जॉब और बिजनेस में आगे बढ़ने के मौके मिल सकते हैं।
लेकिन, अगर आपकी राशि मिथुन, कर्क, कन्या, तुला या धनु है, तो आपको आज थोड़ा संभलकर रहना होगा। क्योंकि इन 5 राशि वालों के कामकाज में रुकावटें आने की आशंका है।
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रिलायंस को कहां से हो रही है कमाई? जियो का मुनाफा कितना बढ़ा? रिटेल में क्या करने जा रहे हैं अंबानी? https://bit.ly/3gh5nXs
मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) ने गुरुवार को वित्त वर्ष 2021 की पहली तिमाही के नतीजे घोषित किए। अप्रैल से जून के बीच कंपनी का रेवेन्यू एक लाख 929 करोड़ रुपए रहा। जियो का मुनाफा पिछले साल के मुकाबले तीन गुना बढ़ गया। लॉकडाउन के कारण कंपनी के रिटेल बिजनेस को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा।
कंपनी के 50% स्टोर पूरी तरह बंद रहे। 29% थोड़े दिन खुल सके। लेकिन, जियो मार्ट के जरिए रिलायंस रिटेल बिजनेस में एक और कदम उठाया। इसका फायदा उसे लॉकडाउन में हुआ। लॉकडाउन के शुरुआत में ही जियोमार्ट के डेली ऑर्डर 4 गुना बढ़ गए।
कंपनी को कमाई कहां से हुई?
तीस साल में पहली बार आरआईएल ने डिसइन्वेस्टमेंट किया। कोरोनाकाल में उसके टेलीकॉम बिजनेस में भारी तेजी आई। इसका असर ये हुआ कि इस तिमाही में कंपनी का नेट प्रॉफिट 10 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का रहा।
जियो से कितना फायदा बढ़ा?
जियो ने रिलायंस को सभी बिजनेस वर्टिकल्स में उम्मीद से बढ़कर कमाई करके दी। उसने लॉकडाउन के दौरान भी देशभर में 9.9 मिलियन कस्टमर जोड़े। कंपनी ने कहा, "पूरे देश में लॉकडाउन था और इस वजह से इस दौरान कंपनी के साथ कस्टमर एंगेजमेंट बढ़ा। प्रति यूजर प्रति माह 12.1 जीबी डेटा कंजम्प्शन हुआ, वहीं औसत वॉइस कंजम्प्शन 756 मिनट प्रति यूजर प्रति माह हुआ।'
जियो का नेट प्रॉफिट अप्रैल से जून के दौरान 182.8 फीसदी बढ़ा। एक साल पहले जियो से कंपनी को 891 करोड़ का नेट प्रॉफिट हुआ था। जो इस बार बढ़कर 2,520 करोड़ रुपए हो गया। जियो का ईयर-ऑन-ईयर नेट प्रॉफिट, रिलायंस के एक्सपेक्टेशनल गेन का 55% है।
रिटेल में और क्या करने जा रहे हैं अंबानी?
रिलायंस के रिटेल बिजनेस पर लॉकडाउन का असर पड़ा। उसका रेवेन्यू 17% गिर गया। अप्रैल से जून के दौरान कंपनी ने कुल 31,633 करोड़ रुपए का रेवेन्यू जनरेट किया। देशभर में रिलायंस रिटेल के 11,800 आउटलेट हैं। लॉकडाउन के चलते इनमें से करीब 80% या तो पूरी तरह या फिर कुछ हद तक बंद रहे। इसके चलते कंपनी का ऑपरेटिंग प्रॉफिट यानी इनकम टैक्स और इंटरेस्ट का खर्च घटाने से पहले का प्रॉफिट करीब 60% घटकर 722 करोड़ रुपए रह गया।
इसकी कुछ हद तक भरपाई कंपनी ने अपने जियो मार्ट प्लेटफॉर्म से की। इसके जरिए उसने एक दिन में 4 लाख तक ऑर्डर डिलीवर किए। हालांकि, कंपनी ने जियो मार्ट की शुरुआत मई के अंत में की। इसके जरिए कंपनी देश के 200 शहरों में ऑनलाइन ग्रॉसरी शॉपिंग की फैसेलिटी दे रही है।
जल्द ही ग्रॉसरी के अलावा इलेक्ट्रॉनिक्स, फैशन, हेल्थकेयर और फार्मा प्रॉडक्ट भी मिलने लगेंगे। जियो मार्ट की टक्कर अमेजन पैन्ट्री, बिग बास्केट, ग्रोफर्स और फ्लिप-कार्ट सुपरमार्केट से है।
फ्यूचर ग्रुप के रिटेल कारोबार खरीद सकती है रिलायंस
फ्यूचर ग्रुप के रिटेल सेगमेंट में बिग बाजार जैसे बड़े ब्रांड शामिल हैं। इसके अलावा फूडहॉल, नीलगिरीज, एफबीबी, सेंट्रल, हेरिटेज फूड्स और ब्रांड फैक्ट्री भी रिटेल सेगमेंट में आते हैं। रिलायंस रिटेल की डील होती है तो फ्यूचर ग्रुप के करीब 1700 रिटेल स्टोर भी रिलायंस रिटेल के पास चले जाएंगे। लाइव मिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, रिलायंस रिटेल 24,000 करोड़ से 27,000 करोड़ रुपए में फ्यूचर रिटेल को खरीद सकती है।
पेट्रोकेमिकल बिजनेस का क्या हुआ?
तेल और गैस बिजनेस में पिछले साल की समान अवधि के आधार पर 45.2 प्रतिशत की कमी आई और वह महज 506 करोड़ रुपए रह गया। साल-दर-साल आधार पर ईबीआईटीडीए 207 करोड़ रुपए से घटकर 32 करोड़ रुपए रह गया।
जब बिजनेस चला ही नहीं तो लाभ कैसे?
कंपनी ने कहा कि उसे 4,966 करोड़ रुपए यानी करीब पांच हजार करोड़ रुपए का असाधारण लाभ हुआ। यह रिलायंस बीपी मोबिलिटी सर्विसेस के शेयर बेचने से हुआ। आरआईएल ने अपने फ्यूल रिटेलिंग बिजनेस में 49 प्रतिशत हिस्सेदारी को बीपी को 7,629 करोड़ रुपए में बेचा। इस पर 1,508 करोड़ रुपए का टैक्स चुकाया, जिससे वन-टाइम गेन के रूप में 4,966 करोड़ रुपए प्राप्त हुए।
10 से 50 प्रतिशत तक सैलरी काटी, इससे क्या बचा?
रिलायंस इंडस्ट्रीज ने हाइड्रोकार्बन बिजनेस में कर्मचारियों की सेलरी में 10 प्रतिशत की कटौती की घोषणा की थी। यह सालभर में करीब 600 करोड़ रुपए की बचत कंपनी के लिए करता है। कंपनी ने 15 लाख रुपए से ज्यादा वार्षिक आय वाले कर्मचारियों के वेतन में कटौती की थी। सीनियर एक्जीक्यूटिव्स और बोर्ड सदस्यों की सेलरी में 30 से 50 प्रतिशत की कटौती की है।
इसके अलावा मुकेश अंबानी ने अपनी 15 करोड़ रुपए की सालाना सेलरी में से इस बार एक रुपया भी नहीं लेने का फैसला किया है। जब सेलरी कटौती की बात आई थी तो ज्यादातर एनालिस्ट ने आश्चर्य जताया था। इससे कंपनी को 50 करोड़ रुपए की मासिक बचत हो रही है। आरआईएल ने 2019-20 में 6.6 लाख करोड़ रुपए का रेवेन्यू कमाया।
कंसोलिडेट्स लेवल पर रिलायंस जियो और रिलायंस रिटेल में इस साल कर्मचारियों पर खर्च 14,075 करोड़ रुपए है जो 2019-20 में 12,488 करोड़ रुपए था।
एनालिस्ट क्या कह रहे हैं?
शेयरखान के अभिजीत बोरा ने कहा कि नतीजे उम्मीद के अनुसार ही रहे। लॉकडाउन की वजह से रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल उत्पादन प्रभावित हुआ है। इसके बाद भी जियो के मुकाबले रिलायंस रिटेल का कारोबार मंदा रहा।
विलियम ओ'नील के मयुरेश जोशी ने कहा, लॉकडाउन का असर पेट्रोकेमिकल बिजनेस पर दिखा। इसके बाद भी पेट्रोकेमिकल बिजनेस की मार्जिन उम्मीद से बेहतर है। जियो ने सरप्राइज किया। एचडीएफसी सिक्योरिटीज के दीपक जसानी ने कहा कि रिफाइनिंग सेग्मेंट में खराब प्रदर्शन की वजह से टॉप-लाइन परफॉर्मेंस कमजोर रहा।
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2100 तक भारत में लोगों की संख्या घटकर 109 करोड़ रह जाएगी, सबसे अधिक आबादी वाले चीन में 80 साल बाद जनसंख्या आधी हो जाएगी https://bit.ly/2D2ywHu
हाल ही में जारी की गई लैंसेट की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया की आबादी 2064 में पीक पर होगी। इसके बाद ये घटने लगेगी। इससे पहले यूएन ने 2100 में इसके पीक पर पहुंचने का अनुमान लगाया था। रिपोर्ट के मुताबिक 2064 में दुनिया की आबादी 973 करोड़ हो जाएगी। 2100 तक ये घटकर 879 रह जाएगी। भारत दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश होगा। लेकिन, उसकी आबादी 2048 के बाद घटने लगेगी।
इस ग्लोबल पॉपुलेशन प्रोजेक्शन रिपोर्ट में आने वाले 80 सालों में दुनिया की आबादी के बारे में कई तरह के फैक्ट्स हैं। जैसे- आने वाले 80 साल बाद भारत और दुनिया के अन्य देशों की आबादी कितनी होगी। कब तक बढ़ेगी और कब से घटेगी? किन देशों की आबादी तेजी से घटेगी? कौन से देश ऐसे हैं जिनकी आबादी आज की आबादी से आधी रह जाएगी?
ग्लोबल फर्टीलिटी रेट 2100 तक घटकर 1.66 हो जाएगा। भारत समेत दुनिया के उन देशों में फर्टिलिटी रेट 70% तक कम होगा जिनकी आबादी ज्यादा है। 2100 भारत की फर्टिलिटी रेट में 68% तक घट जाएगा। 138 करोड़ आबादी वाले देश भारत में 2100 तक 28% लोग कम हो जाएंगे।
सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों में शामिल रूस, जापान, ब्राजील 2100 तक टॉप टेन से बाहर हो जाएंगे
21 करोड़ आबादी वाला देश ब्राजील आबादी के लिहाज से इस वक्त दुनिया का 6वां सबसे बड़ा देश है। 2100 में इसकी आबादी घटकर 16.5 करोड़ रह जाएगी। जापान की आबादी 80 साल में आधी से कम हो 6 करोड़ हो जाएगी और वो दुनिया में 38वें नंबर पर आ जाएगा। 2017 के बाद से रूस और जापान की आबादी लगातार घट रही है।
पाकिस्तान को छोड़कर दक्षिण एशिया के हर देश की आबादी घटेगी
2100 में पाकिस्तान को छोड़कर दक्षिण एशिया के सभी देशों की आबादी आज के मुकाबले कम होगी। भारत की आबादी आज के मुकाबले करीब 21% कम होगी तो बांग्लादेश में आज के मुकाबले आधे लोग रह जाएंगे। वहीं, पाकिस्तान की आबादी 80 साल बाद 16% बढ़ेगी। हालांकि, वहां पीक 2062 में आएगा। जब वहां आज के मुकाबले करीब 47% ज्यादा आबादी होगी।
2100 तक चीन की आबादी लगभग आधी हो जाएगी। भारत की आबादी 32% घटेगी। बांग्लादेश की आबादी भी करीब आधी हो जाएगी। जबकि इंडोनेशिया आबादी मामूली घटेगी। तो पाकिस्तान की बढ़ेगी। इसके बाद भी बांग्लादेश को छोड़कर, एशिया के इन पांच देशों में से चार देश विश्व के सबसे ज्यादा आबादी वाले दस देशों में अभी की तरह बने रहेंगे। पाकिस्तान इंडोनेशिया से ऊपर चला जाएगा, लेकिन एशिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले पांच देशों की लिस्ट में कोई बदलाव नहीं होगा।
2017 में दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले 10 देशों में से चार देश जापान, रूस, बांग्लादेश, और ब्राजील 2100 में टॉप 10 से बाहर हो जाएंगे। 2100 में इनकी जगह, तंजानिया, मिस्र, इथोपिया और कांगो दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले दस देशों में होंगे। अभी कांगो की आबादी 8 करोड़ 80 लाख है। वो आबादी के लिहाज से 18वें नंबर पर है।
इथोपिया की आबादी अभी 10 करोड़ 2 लाख है जो दुनिया में 13 वें नंबर पर है,मिस्र की आबादी अभी 9 करोड़ 60 लाख है जो कि दुनिया में 14वें नंबर पर है और तंजानिया की आबादी 5 करोड़ 30 लाख है जो दुनिया में 24वें नंबर पर है। मिस्र को छोड़कर बाकी तीन देश अफ्रीका से हैं।
वर्किंग एज पॉपुलेशन मतलब 20-64 साल के उम्र के लोगों की आबादी। 2100 में भारत वर्किंग एज पॉपुलेशन में भी दुनिया में नंबर एक पर होगा। चीन की वर्किंग एज पॉपुलेशन करीब 70% घटेगी लेकिन चीन की जनसंख्या ज्यादा होने के कारण, वह 2100 में भी दुनिया में दूसरे नंबर पर बना रहेगा।
नोट- 2017 में चाइल्ड एज पॉपुलेशन और वर्किंग एज पॉपुलेशन को वर्ल्ड बैंक के मुताबिक है। जो 0-14 और 15-64 होती है। लैंटस की रिपोर्ट में इसे 0-19 और 20-65 लिया गया है। 2017 की तुलना में 2100 के प्रोजेक्शन के अंतर में थोड़ा बदलाव हो सकता है।
पहले भी रिसर्च में देखा गया है कि हर शताब्दी में, हर देश के सामने दो बार उतार-चढ़ाव आते हैं। एक बार आबादी घटती है जबकि एक ही शताब्दी में दूसरी बार आबादी बढ़ती है। जिस साल में सबसे ज्यादा होती है उसे पीक ईयर पॉपुलेशन कहा जाता है। चीन में सबसे ज्यादा आबादी अभी के दशक में बढ़ रही है।
जापान में पीक ईयर 2017 में था, स्पेन और थाईलैंड भी पीक ईयर क्रॉस कर चुके हैं। अब इस प्वाइंट से आबादी घटेगी। ग्लोबल लाइफ एक्सपेक्टेंसी 70-80 साल की होती है, इसीलिए आने वाले 50 साल से 80 साल तक इन सभी देशों में नेचुरल डेथ रेट पीक पर होगा और 2100 तक आबादी आधी हो जाएगी
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नॉन वेज और वेज भोजन के लिए करें अलग बर्तनों का इस्तेमाल; जानिए ऐसी कई अहम बातें, जिनका ध्यान रखना बेहद जरूरी https://bit.ly/3fcT7pO
भोजन हमारी सबसे पहली जरूरत है, यह हमारे शरीर के लिए ईंधन की तरह है। अब इस महामारी के दौर में हमें इस काम में भी खासी सावधानी की जरूरत है। फिलहाल खाने की वजह से कोरोनावायरस से संक्रमित होने का कोई मामला सामने नहीं आया है। इसके बावजूद फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) के अनुसार, खाने की और पैकिंग की सतह से वायरस फैल सकता है। हालांकि हम इस मुश्किल को भी साफ-सफाई की आदत से टाल सकते हैं।
बाहर खरीददारी करने जाएं तो इन 5बातों का रखें ध्यान-
- जरूरी होने पर ही किराना खरीदने के लिए घर से बाहर निकलें। इस दौरान साफ मास्क-ग्लव्ज पहनें और 70% एल्कोहल वाला सैनिटाइजर अपने साथ रखें।
- अपना खुद का शॉपिंग बैग साथ लेकर जाएं और पहले से ही शॉपिंग लिस्ट तैयार रखें। कम भीड़ वाले स्टोर्स पर जाने की कोशिश करें।
- कोशिश करें कि एक ही स्टोर से सारा सामान खरीद लें। अपनी जरूरत के हिसाब से ही खरीदी करें। जरूरत से ज्यादा खरीदी करने से सामान की कमी होगी और गैर जरूरी मांग बढ़ेगी।
- कम भीड़ वाले वक्त में ही शॉपिंग करने जाएं। अगर बीमार महसूस कर रहे हैं या किसी तरह के लक्षण नजर आ रहे हैं तो बाहर न निकलें।
- अपने साथ मोबाइल, क्रेडिट/डेबिट कार्ड साथ रखें, ताकि आप कैशलेस पेमेंट कर पाएं। महामारी के दौरान नगदी के बजाए डिजिटल पेमेंट को प्राथमिकता दें।
दुकान के अंदर भी पांच सावधानियों का ध्यान रखें-
- बिल काउंटर, दुकान के अंदर जाने की बारी या सामान उठाने के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें।
- केवल उन्हीं प्रोडक्ट्स को छुएं जो आप खरीदने वाले हैं। हैंडल, काउंटर जैसी लगातार छूने में आने वाली सतहों को टच करने से बचें। अगर छू लिया है तो ध्यान से हाथों को सैनिटाइज करें।
- अपने चेहरे, आंखों और नाक को न छुएं। अगर बहुत जरूरी है तो साफ टिश्यू पेपर का इस्तेमाल करें और उपयोग के तुरंत बाद डिस्पोज कर दें।
- स्टोर के अंदर बास्केट या कार्ट के हैंडल को सैनिटाइजर करें। अगर ऐसा संभव नहीं है तो इस्तेमाल के बाद अपने हाथों को सैनिटाइज करें।
- खरीदी गई चीजों को बाजार से लाते वक्त अपने शरीर से दूर रखें। सामान को अपने शॉपिंग बैग या बास्केट में रखें।
घर पहुंचने के बाद जूतों को बाहर रखें और मोबाइल फोन सैनिटाइज करें
- बाजार से लौटने के बाद भी घर में सावधानियां रखना बहुत जरूरी हो जाता है। सबसे पहले अपने जूतों को घर के अंदर जाने से पहले बाहर ही उतार दें और तुरंत हाथों को साफ करें। चाबियों और मोबाइल फोन को सैनिटाइज करें।
- बाजार से खरीदे हुए फूड पैकेट्स को अल्कोहल सॉल्यूशन या साबुन और साफ पानी से साफ करें। अगर पैकेट ने किसी सतह को छुआ है तो उस सतह को भी सैनिटाइजिंग वाइप या सॉल्यूशन की मदद से साफ करें।
कॉन्टैक्ट लैस हो फूड डिलिवरी
- अपने घर से दूर दूसरे शहरों में रहने वाले लोगों को कई बार बाहर से खाना ऑर्डर करना जरूरी हो जाता है। ऐसे में अगर आप फूड ऑर्डर कर रहे हैं तो हैंडलिंग को लेकर सावधानी रखें, क्योंकि पैकेजिंग की सतह पर कोरोनावायरस हो सकता है।
- ऑर्डर रिसीव करने दौरान हो सके तो कॉन्टैक्ट लैस डिलीवरी लें। इसमें डिलीवरी बॉय पैकेट को गेट पर रखकर आपको फोन पर सूचित कर देगा। अगर ऐसा मुमकिन नहीं है तो कम से कम 1 मीटर की दूरी बनाकर रखें और डिजिटल पेमेंट को प्राथमिकता दें।
- रेस्टोरेंट्स और डिलीवरी सर्विसेज अपनी जगहों पर साफ-सफाई का खासा ध्यान रख रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी सुरक्षा को लेकर हमारा सतर्क रहना बहुत जरूरी है।
वेज-नॉनवेज के लिए अलग-अलग चाकू और बर्तनों का इस्तेमाल करें
खाना बनाने के दौरान भी हमें अपनी और बर्तनों की साफ-सफाई का खासा ख्याल रखना चाहिए। इससे संक्रमण और दूसरी खाने से संबंधित परेशानियों को कम करने में मदद मिलती है। पकाने के दौरान सभी खाने की चीजों को ठीक तरह से कवर कर रखना चाहिए। इसके अलावा वेज-नॉनवेज खाने के लिए अलग-अलग बर्तनों और दूसरी चीजों का इस्तेमाल करें।
- अगर खाना बनाने या सर्व करने वाले किसी व्यक्ति को फ्लू जैसे लक्षण नजर आ रहे हैं तो उन्हें काम करने से बचना चाहिए। खाना बनाने के दौरान साफ-सफाई का सबसे ज्यादा ख्याल रखें।
- खाना बनाने के लिए साफ चाकू, चॉपिंग बोर्ड्स, प्लेट्स आदि का इस्तेमाल करें। वेज-नॉनवेज को पकाने या रखने के लिए भी अलग-अलग बर्तनों का इस्तेमाल करें।
- अगर ऐसा मुमकिन नहीं है तो वेज-नॉनवेज पर उपयोग किए गए चाकू और बर्तनों को फल और सब्जियों पर इस्तेमाल से पहले धो लें।
- नॉनवेज से वेज भोजन की तरफ शिफ्ट करने से पहले भी अपने हाथों को कम से कम 40-60 सेकंड्स तक साबुन और पानी से धोएं।
- फ्रोजन फूड को रेफ्रिजरेटर में 40 सेल्सियस से कम या पैकेट में रहते हुए बहते ठंडे पानी में डिफ्रॉस्ट करना चाहिए। मसालेदार बनाई जाने वाली चीजों को भी फ्रिज में रखना चाहिए।
- अगर सलाद बना रहे हैं तो सब्जियों और फलों को उपयोग से पहले पानी में ठीक तरह से धो लें। आप इसके लिए 50ppm क्लोरीन का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
- खाना पकने के दौरान टेस्ट जानने के लिए उंगलियों या हाथ का इस्तेमाल करने से बचें। अगर चम्मच से टेस्ट ले रहे हैं तो ध्यान रखें कि उनका दोबारा उपयोग न हो। नमक, कैचअप आदि के कंटेनर्स को रोज साफ करें।
- तेल को दोबारा गर्म न करें और इसके उपयोग से भी बचें। हर बार ताजा तेल इस्तेमाल करें। महामारी के दौरान खाना, चम्मच, प्लेट जैसी चीजों को शेयर करने से बचें। खाना परोसने और खाने से पहले 40-60 सेकंड तक हाथों को ठीक तरह से धोएं।
खास भोजन और न्यूट्रिएंट्स हमारे इम्यून सिस्टम और अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी हैं
इम्यून सिस्टम को बेहतर काम करने के लिए संतुलन और सामंजस्य की जरूरत होती है। बेहतर न्यूट्रिएंट्स हमारे इम्यून सिस्टम (इन-नेट और एडोप्टिव इम्युनिटी) को मजबूत करते हैं। कोई भी एक खाना, मसाले या हर्ब बीमारी का इलाज नहीं करते हैं। ऐसे में भोजन में खास तरह के न्यूट्रिएंट्स को शामिल करने अच्छा उपाय है। विटामिन A, B, C, D, E मिनरल्स जैसे- जिंक, सेलेनियम, आयरन, कॉपर, अमीनो एसिड, ओमेगा 3 फैटी एसिड हमारे इम्यून सिस्टम के लिए जरूरी न्यूट्रिएंट्स हैं।
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किसी को शिकायत विहिप ने पलटकर नहीं पूछा, किसी का बेटा कारसेवकपुरम में नौकरी करता है https://bit.ly/3gklZxC
30 अक्टूबर 1990..."रामलला हम आएंगे, मंदिर यहीं बनाएंगे" के नारों से अयोध्या गूंज रही थी। सड़क पर या तो भगवा पहने कारसेवक थे या संगीनों के साथ खाकी वर्दी पहने पुलिस वाले। बाबरी मस्जिद के डेढ़ किमी के दायरे को पुलिस ने बैरिकेट कर रखा था। कहीं से भी कोई आवाजाही नहीं थी। घर की छतों पर पुलिस तैनात थी। लेकिन, कारसेवक रामलला तक पहुंचने के लिए अड़े हुए थे।
हजारों की संख्या में जब कारसेवक हनुमान गढ़ी के आगे गलियों से होते हुए राम जन्मभूमि की ओर बढ़े तो सुरक्षाकर्मियों ने गोली चला दी। ये गोली तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के आदेश पर चलाई गई थी। गोली की वजह से अयोध्या के रहने वाले 5 कारसेवकों की मौत हो गयी।
यह सभी गरीब परिवारों से थे। कोई टोकरी बनाता था तो कोई रिक्शा चलाता था। अब 2020 में अयोध्या में मारे गए उन 5 कारसेवकों में से 3 के परिवार रहते है। उनसे मिलकर हमने उनका हाल जाना।
पहली कहानी: घर गिरवी रखा है, बच्चों की फीस भरने का भी पैसा नही है
अयोध्या के कजियाना मोहल्ले में राजेन्द्र धनकार का घर है। घर के सामने थोड़ी सी जमीन है, जिसमें बड़ा सा पेड़ है। और पीछे घर है। घर की चौड़ाई लगभग 40 फिट होगी लेकिन, अंदर से घर थोड़ा छोटा है। सामने ही राजेन्द्र के छोटे भाई रविन्द्र मिले।
बातचीत में उन्होंने बताया कि उस समय मेरी उम्र 8 या 10 साल रही होगी। 30 अक्टूबर 1990 से कुछ दिन पहले ही कारसेवक अयोध्या पहुंच रहे थे। 30 अक्टूबर को सुबह 7 से 8 बजे का समय था। कुछ लोग भीड़ के साथ जयश्री राम के नारे लगाते हुए आये और भैया को बुलाया। उस समय भाई की उम्र 16 या 17 साल रही होगी।
उन्होंने भी माथे पर भगवा लपेटा और नारे लगाते हुए निकल गए। मैं भी उनके पीछे भागा, लेकिन मां ने मुझे रोक लिया तो मैं वापस आ गया। बाद में पता चला कि गोली चल गई है। फिर उस समय विहिप ने 1 लाख रुपए की मदद की थी। हालांकि, पिता जी ने किसी के कहने पर उस समय किसी चिटफंड कंपनी में पैसे लगा दिए और वह कंपनी भी भाग गई।
चूंकि, हम लोगों की आर्थिक स्थिति पहले भी बहुत अच्छी नही थी। बांस की टोकरी वगैरह ही बनाने का काम था तो वही चल रहा था। अभी 10 साल हुआ माता जी को गुजरे हुए। पिता को पैरालिसिस का अटैक हुआ तो इलाज में काफी पैसे खर्च हुए। कर्ज लेने के लिए 4 कमरों का घर गिरवी रखना पड़ा।
उस घर में 3 किरायेदार रख रखे हैं। 300 रुपये कमरे का किराया है। एक कमरे की छत टूटने को है तो उसे किराए पर नही उठाया है। जिस कमरे में मैं रहता हूँ, दस साल से ज्यादा हुआ पुताई नहीं करवा पाया हूँ। कमरे में ही खाना बनता है इसलिए छत और दीवार काली पड़ गयी है।
रविन्द्र की पत्नी सोनी कहती है कि हमारे छह बच्चे हैं। 2 लड़कियां 8वीं पास कर चुकी हैं तो एक प्राइवेट स्कूल में नाम लिखा दिया, लेकिन लॉकडाउन की वजह से किरायेदार भी भाग गए और टोकरी वगैरह भी बिकनी बन्द हो गयी। जिससे हम इस समय पैसे पैसे के मोहताज हो गए हैं। बच्चों की स्कूल फीस नही जमा कर पा रहे हैं।
कभी-कभी भूखे पेट भी सोना पड़ा। इस समय 3-4 दिन में कहीं 100-200 की कमाई हो जाती है। रविन्द्र ने कहा जब भैया के मरने पर विहिप ने सम्मान किया था, उसके बाद हमें पलटकर भी नही पूछा। हम यहां के वर्तमान भाजपा विधायक के पास भी गए, लेकिन वह मिले ही नही। अब बेटियों की शादी कैसे करूंगा यह भी नही समझ आ रहा है। हालांकि, रविन्द्र कहते है कि श्री राम का मंदिर बनने जा रहा है। यही सबसे बढ़िया बात है। भैया का बलिदान बेकार नही गया।
दूसरी कहानी: जब महिलाएं बाहर नहीं निकलती थी, तब मां ने दुकान संभाल कर हमें पढ़ाया लिखाया
हनुमान गढ़ी से लगभग डेढ़ दो किमी दूर नया घाट मोहल्ला में मुख्य सड़क पर ही संदीप गुप्ता की कपड़ों की दुकान है। संदीप गुप्ता के पिता वासुदेव गुप्ता की भी मौत 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवा के दौरान ही हुई थी। दुकान पर बैठे संदीप ने बताया जब पिता जी की मौत हुई तो मेरी उम्र काफी कम थी।
मुझे बताया गया कि उस समय न तो रिश्तेदार हमारी मदद को खड़े हुए न ही हमारे दादा-दादी। उसी समय से हम लोग अलग रह रहे हैं। मुझे याद है मेरी माँ शकुंतला उस समय घूंघट डाले रहती थी लेकिन हम लोगों को पालना था तो वह दुकान पर बैठने लगी।
पहले पिता जी मिठाई की दुकान चलाते थे। बाद में जब मां ने दुकान ने संभाली तो कपड़ों की दुकान खोली। धीरे-धीरे खर्चा पानी चलता रहा। हम लोगों को पढ़ाया। एक बहन की शादी हो गयी है। एक बहन अभी घर पर है। हम दोनों भाई बहन ग्रेजुएशन किये हुए हैं। हमारी कहीं नौकरी नहीं लगी तो हम मां के साथ दुकान पर बैठने लगे।
लॉकडाउन में तो हम लोगों की हालत और खराब हो गयी है। धार्मिक शहर में जब कोई आएगा ही नही तो कुछ बिकेगा ही नही। अब मंदिर बन रहा है मेरी यही अपील है ट्रस्ट से कि हम लोगों को भी कुछ काम दे दिया जाए। ताकि हम लोगों की भी रोजी-रोटी चल सके।
तीसरी कहानी: 30 साल पहले हुई थी विधवा, अब बच्चों की बेरुखी डराती है
हनुमान गढ़ी से लगभग 500 मीटर दूर रानी मोहल्ले में गायत्री देवी का घर है। 1990 में कारसेवा के दौरान इनके पति रमेश पांडेय की भी जान चली गयी थी। विहिप ने तब 10 लाख से ज्यादा रुपयों से इस परिवार की मदद भी की थी लेकिन एक विधवा ने अपने परिवार को उन्हीं रुपयों से संभाला और संवारा लेकिन बुढ़ापे में उसे थोड़े-थोड़े पैसों के लिए भी दूसरों का मुंह देखना पड़ रहा है।
यह बताते बताते 55 साल की गायत्री की आंखों में आंसू आ जाते हैं। घर के दरवाजे पर टिकी गायत्री कहती हैं कि 13-14 साल की उम्र रही होगी जब मेरी शादी हो गयी थी। 10-15 बरस बीते होंगे जब पति भरा पूरा परिवार छोड़ कर चले गए।
दो बेटे और दो लड़कियां और हमारी सास को पीछे छोड़ गए थे। हमको समझ नहीं आ रहा था कि अब आगे कैसे और क्या करेंगे। पति हमारे एक ईंट भट्ठे पर मुंशी थे जिंदगी आराम से चल रही थी। लेकिन, बाद में दिक्कत हो गयी। तब विहिप ने पैसों से मदद की। उसी से दो बेटियों की शादी की। दोनों बेटों को बड़ा किया। सास की दवाई पानी की। अब बड़ा बेटा कारसेवक पुरम में ही नौकरी करता है।
जबकि दूसरा बेटा भी कहीं प्राइवेट जॉब करता है। बड़ा बेटा अलग रहता है। मैं छोटे बेटे के साथ रहती हूँ। अब बुढ़ापा आ गया है। पैसे खत्म हो चुके हैं। थोड़े-थोड़े पैसों के लिए अब किसी का मुंह देखना अच्छा नही लगता है। चिंता रहती है कि कैसे आगे की जिंदगी कटेगी। गायत्री संभलते हुए कहती है कि चलो सबसे अच्छा हुआ कि राममंदिर बनने जा रहा है। हो सकता है कि हम लोगों को भी निमंत्रण मिले।
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राम मंदिर के गर्भगृह में 200 फीट गहराई में रखा जाएगा टाइम कैप्सूल, इंदिरा गांधी और नरेंद्र मोदी ऐसा पहले भी कर चुके हैं https://bit.ly/2P9JLR9
अयोध्या में 5 अगस्त को राम मंदिर की नींव रखी जाएगी। इससे पहले राम मंदिर नींव के भीतर टाइम कैप्सूल रखे जाने को लेकर खूब चर्चा है। यह कैप्सूल क्या है? क्या ऐसा पहली बार हो रहा है? ऐसे तमाम सवाल लोगों के मन में चल रहे हैं। दरअसल, बताया जा रहा है कि राम मंदिर का इतिहास हजारों साल तक मौजूद रहे, इसके लिए मंदिर के गर्भगृह की 200 फीट गहराई में टाइम कैप्सूल रखा जाएगा।
इस टाइम कैप्सूल पर मंदिर का पूरा विवरण और इतिहास लिखा रहेगा, ताकि भविष्य में जन्मभूमि और राम मंदिर का इतिहास देखा जा सके और कोई विवाद न हो। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य कामेश्वर चौपाल ने मीडिया को सबसे पहले यह जानकारी दी थी।
बिहार के रहने वाले कामेश्वर चौपाल वह व्यक्ति हैं, जिन्होंने 9 नवंबर 1989 को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए आधारशिला रखी थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राम मंदिर निर्माण के लिए बने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में उन्हें सदस्य भी बनाया गया है।
1989 में भी भूमि के नीचे दबाया गया था ताम्र लेख
राम मंदिर के चीफ आर्किटेक्ट निखिल सोमपुरा बताते हैं कि प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के बाद मंदिर का निर्माण शुरू हो जाएगा। उनके मुताबिक 200 मीटर गहराई की मिट्टी का सैंपल लिया गया था, लेकिन अभी उसकी रिपोर्ट नहीं आई है। रिपोर्ट के आधार पर ही मंदिर का निर्माण करने वाली कंपनी एलएनटी नींव की खुदाई शुरू कर देगी।
- टाइम कैप्सूल क्या होता है?
टाइम कैप्सूल एक कंटेनर की तरह होता है और हर तरह के मौसम को सहन करने की इसमें क्षमता होती है। अयोध्या में राम मंदिर के नीचे डाला जाने वाला टाइम कैप्सूल कुछ सदियों के बाद एक ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में जाना जाएगा। टाइम कैप्सूल को एक ऐसे ऐतिहासिक महत्व के दस्तावेज के रूप में जाना जाता है, जिसमें किसी काल की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक स्थिति का उल्लेख हो। यह दस्तावेज ताम्र पत्र पर लिखा जाएगा।
- टाइम कैप्सूल पर क्या लिखा जाएगा?
इस ताम्र पत्र पर मंदिर का संक्षिप्त इतिहास, शिलान्यास की तारीख, भूमिपूजन करने वाले मुख्य अतिथि, उपस्थित विशिष्टजन का नाम, निर्माण की शैली तथा वास्तुविद का नाम लिखा रहेगा। ट्रस्ट के सदस्य कामेश्वर चौपाल के अनुसार, ताम्र लेख तैयार करने की जिम्मेदारी दिल्ली की एक कंपनी को सौंपी गई है।
1989 में भी जब राममंदिर का शिलान्यास हुआ था, तब भी एक ताम्र लेख भूमि के नीचे दबाया गया था
इस बीच, यह जानकारी भी सामने आई है कि साल 1989 में जब गर्भगृह के सामने राममंदिर का शिलान्यास हुआ था, उस वक्त भी एक ताम्र लेख भूमि के नीचे दबाया गया था। रामलला की ओर से मुकदमे की पैरवी करने वाले वकील त्रिलोकीनाथ पांडेय बताते हैं कि उस वक्त ताम्र लेख विश्व हिन्दू परिषद के महासचिव अशोक सिंहल ने तैयार कराया था। पांडेय बताते हैं कि ताम्रपत्र तांबे से बनाया जाता है, क्योंकि इस धातु में जंग नहीं लगती है। यह लेख मिट्टी में भी हजारों साल तक सुरक्षित रहेगा।
जब इंदिरा गांधी ने बनवाया टाइम कैप्सूल
भारत में पहले भी ऐसे टाइम कैप्सूल ऐतिहासिक महत्व की इमारतों की नींव में डाले जा चुके हैं। 1973 में इंदिरा गांधी सरकार ने लालकिले की नींव में ऐसा ही एक टाइम कैप्सूल डाला था। तब इसे काल-पत्र का नाम दिया गया था। उस वक्त विपक्ष के लोगों ने इंदिरा गांधी के इस कदम की काफी आलोचना की थी और आरोप लगाया था कि इस काल-पत्र में इंदिरा गांधी ने अपने परिवार का महिमामंडन किया है।
इंदिरा सरकार के काल-पत्र में क्या लिखा था, उसका राज आज तक नहीं खुल सका
- इंदिरा गांधी की सरकार ने अतीत की अहम घटनाओं को दर्ज करने का काम इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च यानी आईसीएचआर को सौंपा था और मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज के इतिहास के प्रोफेसर एस कृष्णासामी को पूरी पाण्डुलिपि तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन यह काम पूरा होने से पहले ही विवादों में फंस गया और इंदिरा सरकार के इस काल-पत्र में क्या लिखा था, उसका राज आज तक नहीं खुल सका।
- 1977 में कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। सरकार गठन के कुछ दिनों बाद टाइम कैप्सूल को निकाला गया, लेकिन जनता पार्टी की सरकार ने इस बात का रहस्योद्घाटन नहीं किया कि उस टाइम कैप्सूल में क्या था? बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय से मांगी गई एक जानकारी में बताया गया था कि पीएमओ को इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है।
मोदी भी बनवा चुके हैं टाइम कैप्सूल
टाइम कैप्सूल के विवाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम भी जुड़ा रहा है। नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो 2011 में उन पर भी टाइम कैप्सूल दफनाने का विपक्ष ने आरोप लगाया था। विपक्ष का कहना था कि गांधीनगर में निर्मित महात्मा मंदिर के नीचे टाइम कैप्सूल दफनाया गया है, जिसमें मोदी ने अपनी उपलब्धियों का बखान किया है।
2017 में स्पेन में 400 साल पुराना टाइम कैप्सूल निकला था
30 नवंबर 2017 को स्पेन के बर्गोस में करीब 400 साल पुराना टाइम कैप्सूल निकला था, जो ईसा मसीह की मूर्ति के रूप में था। मूर्ति के भीतर साल 1777 के आसपास की आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक जानकारियां थीं।
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इस साल भी दो दिन जन्माष्टमी, मथुरा-वृंदावन और द्वारिका में 12 और जगन्नाथ पुरी में 11 अगस्त को मनाया जाएगा भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव https://bit.ly/2PchMjG
कृष्ण जन्माष्टमी की तारीख को लेकर इस साल भी दो मत हैं। ज्यादातर पंचांगों में 11 और 12 अगस्त को जन्माष्टमी है, लेकिन ऋषिकेश और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में 13 अगस्त को भी जन्माष्टमी मनाने की तैयारी है।
वैष्णव मत के मुताबिक 12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाना श्रेष्ठ है, इसलिए मथुरा (उत्तर प्रदेश) और द्वारिका (गुजरात) दोनों जगहों पर 12 अगस्त को ही जन्मोत्सव मनेगा। जगन्नाथपुरी में 11 अगस्त की रात को कृष्ण जन्म होगा। वहीं, काशी और उज्जैन जैसे शैव शहरों में भी 11 को ही जन्माष्टमी मनाई जाएगी।
- इसका कारणः कृष्ण जन्म की तिथि और नक्षत्र का एक साथ नहीं मिल रहे। 11 अगस्त को अष्टमी तिथि सूर्योदय के बाद लगेगी, लेकिन पूरे दिन और रात में रहेगी। भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। काशी के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्र का कहना है कि इस साल जन्माष्टमी पर्व पर श्रीकृष्ण की तिथि और जन्म नक्षत्र का संयोग नहीं बन रहा है। इस बार 11 अगस्त, मंगलवार को अष्टमी तिथि पूरे दिन और रातभर रहेगी।
अलग-अलग दिन मनाई जाएगी जन्माष्टमी
पं. मिश्र के साथ ही अखिल भारतीय विद्वत परिषद का कहना है कि गृहस्थ लोगों के लिए जन्माष्टमी पर्व 11 अगस्त को रहेगा। वहीं, साधु और सन्यासियों के लिए 12 अगस्त को। जन्माष्टमी को लेकर पंचांग भेद है, क्योंकि 11 अगस्त को अष्टमी तिथि है जो कि अगले दिन सुबह 8 बजे तक रहेगी।
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भी अष्टमी तिथि पर आधी रात में हुआ था। इसलिए विद्वानों का कहना है कि गृहस्थ जीवन वालों को इसी दिन कृष्ण जन्माष्टमी पर्व मनाना चाहिए। वहीं, अगले दिन यानी 12 अगस्त को सूर्योदय के समय अष्टमी तिथि तो होगी, लेकिन सुबह 8 बजे तक ही रहेगी। इसलिए कुछ जगहों पर जन्माष्टमी पर्व 12 अगस्त को भी मनाया जाएगा।
मथुरा: भक्तों के बिना मनेगा जन्मोत्सव
श्रीकृष्ण जन्मभूमि न्यास के सचिव कपिल शर्मा बताते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म नक्षत्र रोहिणी था। जो कि इस बार 12 अगस्त की रात में है। नक्षत्र की स्थिति देखते हुए मथुरा में कृष्ण जन्मोत्सव पर्व 12-13 अगस्त की रात में मनाया जाएगा। कोरोना के चलते इस बार भक्तों के बिना ही कृष्ण जन्मोत्सव पर्व मनाया जाएगा। इस उत्सव को टीवी के जरिये देखा जा सकेगा। वहीं, पुष्पांजली समारोह जिसे हिंडोला भी कहा जाता है, भागवत भवन में रखा जाएगा।
जगन्नाथ पुरी में 11, द्वारिका में 12 अगस्त
द्वारिका धाम मंदिर के पुजारी पं. प्रणव भाई के मुताबिक, 12 अगस्त को जन्मोत्सव मनाना शुभ है। वहीं, जगन्नाथपुरी के पुजारी पं. श्याम महापात्रा के मुताबिक, उड़ीसा सूर्य उपासक प्रदेश है, इसलिए यहां सूर्य की स्थिति को देखते हुए त्योहार मनाए जाते हैं। इसलिए, पुरी मंदिर में 11 अगस्त को भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव और 12 अगस्त को नंदोत्सव मनाया जाएगा।
तिथि और नक्षत्र के कारण होता है तारीखों में भेद
पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण जन्मोत्सव भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में मनाया जाता है। लेकिन, ग्रह-नक्षत्रों की चाल में बदलाव होने से कई बार ऐसी स्थिति बन जाती है कि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र दोनों एक ही नहीं होते।
इसलिए कुछ लोग जन्म तिथि को महत्वपूर्ण मानते हुए अष्टमी तिथि को ये पर्व मनाते हैं और कुछ लोग रोहिणी नक्षत्र वाले दिन मनाते हैं। हालांकि, दोनों ही दिन ये पर्व मनाना उचित है। इसलिए संप्रदाय भेद के कारण ये पर्व तिथि और नक्षत्र प्रधान माना जाता है।
12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाने के तर्क
ज्योतिषाचार्य पं. मिश्र के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के योग में हुआ था। लेकिन, इस बार तिथि और नक्षत्र का संयोग एक ही दिन नहीं बन रहा है। मंगलवार, 11 अगस्त को अष्टमी तिथि पूरे दिन और रातभर रहेगी। इस वजह से 11 अगस्त की रात जन्माष्टमी मनाना ज्यादा शुभ रहेगा।
पं. मिश्र का कहना है कि 11 अगस्त को ही श्रीकृष्ण के लिए व्रत-उपवास और पूजा-पाठ करना चाहिए। अष्टमी तिथि 12 अगस्त को सूर्योदय काल में रहेगी, लेकिन सुबह 8 बजे ही तिथि बदल जाएगी। ये दिन अष्टमी और नवमी तिथि से युक्त रहेगा। इसलिए 11 अगस्त को ही जन्माष्टमी पर्व मनाना उचित नहीं होगा।
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जासूसी की वजह से अमेरिका ने चीन का कॉन्सुलेट बंद किया, ब्रिटेन ने 5जी नेटवर्क से चीनी कंपनी ही हटा दी, भारत ने 106 ऐप्स बैन कीं https://bit.ly/39LGXTM
4 मई को न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने एक स्पेशल रिपोर्ट छापी थी। इस रिपोर्ट में चीन की सरकार की एक इंटरनल रिपोर्ट के हवाले से बताया गया कि दुनिया भर में एंटी-चाइना सेंटीमेंट्स यानी चीन विरोधी भावना 1989 में थियानमेन चौक पर हुए नरसंहार के बाद से सबसे ज्यादा है। इस रिपोर्ट को चीन के गृह मंत्रालय ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग को सौंपा था।
दुनिया में एंटी-चाइना सेंटीमेंट्स बढ़ने की वजह कोरोनावायरस बताई गई थी। इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया था कि कोरोनावायरस के कारण चीन के खिलाफ माहौल बनेगा और अमेरिका से सीधे टकराव होगा।
लेकिन, सिर्फ कोरोनावायरस ही नहीं बल्कि और भी कई कारण हैं, चाहे हॉन्गकॉन्ग का मुद्दा हो या शिन्जियांग में उइगर मुसलमानों के मानवाधिकारों का मसला। चाहे सीमा विवाद। इन वजहों से चीन दुनिया में चारों तरफ से घिरता जा रहा है। लेकिन, चौंकाने वाली बात ये भी है कि घिरने के बाद भी चीन पर इसका ज्यादा कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।
सबसे पहले बात, उन 6 कारणों की, जिनकी वजह से चीन घिरा
1. हॉन्गकॉन्ग : चीन ने यहां राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू किया। इसमें हॉन्गकॉन्ग में देशद्रोह, आतंकवाद, विदेशी दखल और विरोध प्रदर्शन जैसी गतिविधियां रोकने का प्रावधान है। कानून तोड़ने पर तीन साल की सजा से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान भी है। कानून 1 जुलाई से लागू है और अब वहां चीनी सुरक्षा एजेंसियां काम कर सकेंगी। अभी तक ऐसा नहीं था।
2. शिन्जियांग : चीन के कब्जे वाले इस प्रांत में 45% से ज्यादा आबादी उइगर मुसलमानों की है। चीन पर उइगर मुसलमानों के मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप है। कुछ रिपोर्ट्स में सामने आया है कि चीन उइगर महिलाओं की जबरन नसबंदी करवा रहा है, ताकि जनसंख्या पर काबू पाया जा सके।
3. ताइवान : चीन ताइवान को अपना हिस्सा बताता है और जब हॉन्गकॉन्ग में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करने की तैयारी चल रही थी, तब चीन में ताइवान को लेकर भी चर्चा थी कि उसे ताइवान की मिलिट्री टेकओवर कर लेनी चाहिए। हालांकि, चीन के लिए ये उतना आसान नहीं है। ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन कहती हैं कि ताइवान दूसरा हॉन्गकॉन्ग नहीं बनेगा। ताइवान का दावा है कि चीन अक्सर मिलिट्री प्लेन भेजता रहता है।
4. सीमा विवाद : भारत के साथ चीन का सीमा विवाद चल ही रहा है। जून में लद्दाख सीमा पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प भी हो चुकी है। लेकिन, सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दूसरे देशों के साथ भी चीन का सीमा विवाद जारी है। इसके अलावा चीन दक्षिणी चीन सागर पर भी अपना हक जताता है। हाल ही में यहां अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने भी अपने जहाज तैनात कर दिए हैं।
5. जासूसी : अमेरिका में पिछले हफ्ते ही सिंगापुर के एक नागरिक को गिरफ्तार किया गया है। इसे अमेरिका में चीन के जासूस के तौर पर काम करने का दोषी ठहराया गया है। इसके अलावा एक चीनी रिसर्चर को भी हिरासत में लिया गया है, जिस पर चीनी सेना के साथ अपने संबंधों को छिपाने का आरोप है। इसके अलावा चीन की टेक कंपनियां हुवावे और जेडटीई को भी अमेरिका सुरक्षा के लिए खतरा मानता है।
6. कोरोनावायरस : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प तो कई बार सार्वजनिक तौर से कोरोनावायरस को 'चीनी वायरस' कह चुके हैं। कोरोनावायरस कहां से निकला? इसकी जांच के लिए मई में 73वीं वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में एक प्रस्ताव पेश हुआ। इस प्रस्ताव का भारत ने भी समर्थन किया था। भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, न्यूजीलैंड, कनाडा, कतर, सऊदी अरब, अफ्रीकी देश, यूरोपियन यूनियन, यूक्रेन, रूस और ब्रिटेन समेत 100 से ज्यादा देशों के नाम हैं।
अमेरिका-ब्रिटेन-भारत जैसे देश चीन के खिलाफ
1. अमेरिका : चीन की 11 कंपनियों पर प्रतिबंध, दोनों देशों ने एक-दूसरे के कॉन्सुलेट बंद किए
अमेरिका और चीन के बीच तनाव कोई नई बात नहीं है, लेकिन कोरोनावायरस के इस दौर में पिछले 7 महीनों में दोनों देशों की ये तकरार खुलकर सामने आई है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प तो कोरोनावायरस के लिए सीधे तौर पर चीन को ही जिम्मेदार ठहराते हैं। वो तो ये तक कह चुके हैं कि कोरोनावायरस को छिपाने में डब्ल्यूएचओ ने भी चीन की मदद की। ट्रम्प अक्सर कोरोनावायरस को 'चीनी वायरस' कहते हैं।
We are United in our effort to defeat the Invisible China Virus, and many people say that it is Patriotic to wear a face mask when you can’t socially distance. There is nobody more Patriotic than me, your favorite President! pic.twitter.com/iQOd1whktN
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) July 20, 2020
जुलाई की शुरुआत में ही अमेरिका की खुफिया एजेंसी एफबीआई के डायरेक्टर क्रिस्टोफर रे ने चीन को अमेरिका के लिए सबसे बड़ा 'खतरा' बताया। उससे पहले 30 जून को अमेरिका के फेडरल कम्युनिकेशंस कमीशन यानी एफसीसी ने भी चीन की हुवावे और जेडटीई को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए 'खतरा' बताया था।
जुलाई में ही अमेरिका ने टेक्सास के ह्यूस्टन स्थित चीनी कॉन्सुलेट को बंद करने का आदेश दे दिया था। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो के मुताबिक, ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि चीन 'इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी' चुरा रहा था। बदले में चीन ने भी चेंगड़ू स्थित अमेरिकी कॉन्सुलेट को बंद कर दिया।
अमेरिका ने 7 जुलाई को उन चीनी अधिकारियों पर वीजा प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया, जो अमेरिकी पत्रकार, टूरिस्ट्स, डिप्लोमैट्स और अफसरों को तिब्बत जाने से रोकने के लिए जिम्मेदार थे। जवाब में चीन ने भी कुछ अमेरिकी अफसरों पर वीजा प्रतिबंध लगा दिया।
इसके अलावा चीन के शिन्जियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करने के मामले में अमेरिका ने 11 चीनी कंपनियों पर भी प्रतिबंध लगा दिया। अमेरिकी अफसरों के मुताबिक, ये कंपनियां 10 लाख उइगर मुसलमानों का शोषण करती थीं।
इतना ही नहीं, हॉन्गकॉन्ग में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करने के फैसले का अमेरिका ने भी विरोध किया था। अमेरिका का कहना था कि इस नए कानून से हॉन्गकॉन्ग के लोगों की आजादी पर खतरा पैदा हो गया है। इस पर चीन ने जवाबी कार्रवाई करने की धमकी भी दी थी।
इन सबके अलावा दक्षिण चीन सागर में भी अमेरिका ने जहाज भेजे थे। कुछ दिन पहले ही चीन की कम्युनिस्ट सरकार समर्थित थिंक टैंक स्ट्रेटेजिक सिचुएशन प्रोबिंग इनिशिएटिव ने दावा किया था कि अमेरिका के पी-8ए (पोसाइडन) और ईपी-3ई एयरक्राफ्ट्स ने साउथ चाइना सी से चीन के झेजियांग और फुजियान तक उड़ान भरी। कुछ देर बाद पी-8ए वापस लौटा और फिर यह शंघाई से 76.5 किलोमीटर दूर तक उड़ान भरता रहा।
2. ब्रिटेन : 5जी नेटवर्क से चीनी कंपनी को हटाया, हॉन्गकॉन्ग पर भी विरोध
मई के आखिर में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने डी-10 ग्रुप बनाने का आइडिया दिया था। उनका कहना था कि इस ग्रुप में जी-7 में शामिल सभी सातों देशों के अलावा भारत, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया को भी जोड़ा जाए। इस ग्रुप का मकसद चीन के खिलाफ रणनीतिक एकजुटता बनाना होगा। जॉनसन का मानना था कि सभी देश 5जी टेक्नोलॉजी पर मिलकर काम करें, ताकि चीन की डिपेंडेंसी खत्म हो।
बोरिस जॉनसन ने मई में ये आइडिया दिया और जुलाई में ब्रिटेन के 5जी नेटवर्क से चीन की हुवावे कंपनी को हटाने का फैसला ले लिया। जॉनसन के इस फैसले के बाद ब्रिटेन के सर्विस ऑपरेटर्स को हुवावे के नए 5जी इक्विपमेंट खरीदने पर पाबंदी लग गई। साथ ही ऑपरेटर्स को अपने नेटवर्क से 2027 तक हुवावे की 5जी किट भी हटानी होगी।
जॉनसन का ये फैसला चीन और हुवावे के लिए बहुत बड़ा झटका है। अमेरिका पहले ही आरोप लगा चुका है कि हुवावे के 5जी नेटवर्क के जरिए चीन जासूसी करता है।
इससे पहले चीन ने जब हॉन्गकॉन्ग में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू किया, तो बोरिस जॉनसन ने चीन के इस फैसले का विरोध करते हुए हॉन्गकॉन्ग के 30 लाख लोगों को ब्रिटेन में बसने का प्रस्ताव दे दिया। उन्होंने कहा कि नया कानून हॉन्गकॉन्ग की आजादी का उल्लंघन है। हॉन्गकॉन्ग पहले ब्रिटेन का ही उपनिवेश था, लेकिन 1997 में ब्रिटेन ने इसे चीन को लौटा दिया।
इसके साथ ही हॉन्गकॉन्ग में नया कानून लागू होने के बाद ब्रिटेन ने हॉन्गकॉन्ग के साथ अपनी प्रत्यर्पण संधि सस्पेंड करने की घोषणा कर दी। इस संधि के तहत हॉन्गकॉन्ग में अपराध करने वाले अगर ब्रिटेन भाग जाते थे, तो उन्हें पकड़कर हॉन्गकॉन्ग भेजा जा सकता था। नए कानून पर ब्रिटेन के विदेश मंत्री डॉमनिक रॉब ने कहा कि चीन की तरफ से हॉन्गकॉन्ग पर नया कानून थोपना, ब्रिटेन की नजर में अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का गंभीर उल्लंघन है।
इन सबके अलावा चीन के शिन्जियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों के मानवाधिकारों का मुद्दा भी ब्रिटेन ने उठाया था। ब्रिटेन का कहना था कि शिन्जियांग में उइगर महिलाओं की जबरन नसबंदी की जा रही है।
3. भारत : 100 से ज्यादा चीनी ऐप्स बैन कीं, कारोबार के लिए नए नियम बनाए
मई की शुरुआत में लद्दाख सीमा पर भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ गया। दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ गई थीं। इसी महीने भारत ने अपने एफडीआई नियमों में बदलाव कर दिया। नए नियमों के तहत जिन देशों की सीमाएं भारत से लगती हैं, अगर वो भारत के किसी कारोबार या कंपनी में इन्वेस्ट करते हैं, तो इसके लिए उन्हें केंद्र सरकार की मंजूरी लेनी होगी। पहले ये पाबंदी सिर्फ पाकिस्तान और बांग्लादेश के इन्वेस्टर्स पर ही थी।
इसके बाद हाल ही में सरकार ने जनरल फाइनेंशियल नियम 2017 में भी बदलाव किया कि जो भी देश भारत के साथ सीमा साझा करते हैं, वो सरकारी खरीद में बोली नहीं लगा सकते। हालांकि, इसमें ये भी जोड़ा गया कि अगर कोई देश बोली लगाना चाहता भी है, तो उसे डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (डीपीआईआईटी) की रजिस्ट्रेशन कमेटी में रजिस्टर्ड कराना होगा। इसके अलावा इन्हें विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय से भी मंजूरी लेनी होगी।
इन दोनों ही नियमों में बदलावों का सबसे ज्यादा असर चीन पर ही होगा। हालांकि, नियमों में चीन का नाम नहीं लिया गया था। लेकिन, ये दोनों ही बदलाव चीन को मैसेज देने के लिए किए गए थे।
इसके अलावा जब लद्दाख सीमा पर गलवान घाटी में जब भारत-चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई, तो उसके बाद सरकार ने टिकटॉक, यूसी ब्राउजर समेत 59 चीनी ऐप्स पर बैन लगा दिया। उसके बाद कुछ दिन पहले ही सरकार ने चीन की 47 ऐप्स और बैन कर दीं। अब तक सरकार 106 चीनी ऐप्स पर बैन लगा चुकी है।
4. ताइवान : चीन से निपटने के लिए दक्षिण चीन सागर में मिलिट्री ड्रिल की
चीन और ताइवान के बीच अलग ही तरह का रिश्ता है। 1911 में चीन में कॉमिंगतांग की सरकार बनी। 1949 में यहां गृहयुद्ध छिड़ गया और माओ त्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने कॉमिंगतांग की पार्टी को हराया। हार के बाद कॉमिंगतांग ताइवान चले गए।
1949 में चीन का नाम 'पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना' पड़ा और ताइवान का 'रिपब्लिक ऑफ चाइना' पड़ा। दोनों देश एक-दूसरे को मान्यता नहीं देते।
चीन अक्सर ताइवान को अपना हिस्सा बताता रहता है। लेकिन, ताइवान खुद को अलग देश मानता है। मई में ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने खुलेआम चीन को चुनौती दे दी थी। उन्होंने कहा था, 'ताइवान कभी चीन के नियम-कायदे नहीं मानेगा। चीन को इस हकीकत के साथ शांति से जीने का तरीका खोजना होगा।'
इसके अलावा दक्षिण चीन सागर को लेकर भी चीन और ताइवान के बीच तनातनी होती रहती है। दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती दखलंदाजी के बीच ताइवान ने 5 दिन की मिलिट्री ड्रील की। इसमें चीन की मिसाइलों को मार गिराने पर फोकस था। इसके अलावा यहां मिराज 2000, एफ-16 फाइटर जेट और पी-3 सी एंटी सबमरीन फाइटर जेट तैनात किए जा चुके हैं। ताइवान की सेना के मुताबिक, इन फाइटर जेट्स को यहां तब तक रखा जाएगा, जब तक चीन के हमले का खतरा है।
इसके साथ ही हॉन्गकॉन्ग के प्रदर्शनकारियों को भी ताइवान का समर्थन मिला है। जब चीन ने हॉन्गकॉन्ग में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू किया, तो हॉन्गकॉन्ग के लोगों की मदद करने के लिए ताइवान ने राजधानी ताइपे में ऑफिस भी खोल दिया। इस ऑफिस से उन लोगों को मदद मिलेगी, जो नया कानून लागू होने के बाद हॉन्गकॉन्ग से ताइवान आ रहे हैं।
5. ऑस्ट्रेलिया : कोरोना की जांच का समर्थन किया, हॉन्गकॉन्ग के लोगों को नागरिकता का प्रस्ताव
ऑस्ट्रेलिया का नाम भी उन देशों में शामिल है, जिसके रिश्ते पिछले कुछ महीने में चीन से खराब हुए हैं। ऑस्ट्रेलिया ने काफी पहले ही कोरोनावायरस की जांच की मांग का समर्थन कर दिया था। इससे चीन ऑस्ट्रेलिया से चिढ़ गया था। इसके बाद चीन ने ऑस्ट्रेलिया पर कुछ प्रतिबंध भी लगा दिए थे।
हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने आधिकारिक रूप से दक्षिण चीन सागर पर चीन के दावों को खारिज कर दिया था। ऑस्ट्रेलिया ने यूएन में कहा था कि दक्षिण चीन सागर में चीन के दावों का कोई 'कानूनी आधार' नहीं है।
इन सबके अलावा ऑस्ट्रेलिया ने शिन्जियांग और हॉन्गकॉन्ग में मानवाधिकारों का मसला भी उठाया था। चीनी कंपनी हुवावे को ऑस्ट्रेलिया के 5जी नेटवर्क के निर्माण से रोक दिया था। ऑस्ट्रेलिया अक्सर चीन पर अपने घरेलू मामलों में हस्तक्षेप करने का आरोप भी लगाता रहता है।
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तेज बुखार आया, मुंह से खून आने लगा, अकेले इलाज करवाते रहे लेकिन घरवालों को नहीं बताया https://bit.ly/33eslLc
आज हम दिल्ली एम्स के दो डॉक्टरों की कहानी बताने जा रहे हैं। दोनों कोरोना मरीजों का इलाज करते-करते खुद कोरोना से संक्रमित हुए। ठीक होने के बाद एक तो वापस कोरोना वॉर्ड में भी लौट आए, मरीजों का फिर इलाज करने।
पहली कहानी - डॉक्टर सुनील ज्याणी की, जो संक्रमित हुए, आईसीयू में इलाज चला, 10 किलो वजन कम हो गया, अब ड्यूटी पर लौटे
मैं 24 मार्च से ही कोरोना पेशेंट का ट्रीटमेंट कर रहा था। सात-सात दिन के रोटेशन में हमारी ड्यूटी हुआ करती थी। 29 मई को मुझे अचानक बुखार आ गया। कपकपी लगने लगी। कमजोरी बहुत ज्यादा आ गई। मैंने अनुमान लगा लिया था कि मैं कोरोना पॉजिटिव हो गया हूं। उस दिन मैंने 15 मिनट पहले ही अपनी ड्यूटी खत्म कर दी और तुरंत अपने रूम में चला गया।
उसी दिन रात में मुझे बहुत तेज ठंड लगी। घर राजस्थान में है। दिल्ली में एम्स के हॉस्टल में अकेला ही रहता हूं, इसलिए कोई देखने वाला नहीं था। सुबह होते ही मैंने डिपार्टमेंट में बताया कि ऐसे लक्षण हैं। उस दिन मेरा ब्लड लिया गया और दूसरे दिन रिपोर्ट निगेटिव आई। लेकिन, उस समय प्रोटोकॉल था कि यदि बुखार आया है तो 7 दिनों तक क्वारैंटाइन ही रहना है। इसलिए मैं क्वारैंटाइन ही था।
क्वारैंटाइन के चौथे दिन मुझे बहुत तेज बुखार आया। कफ बनाना शुरू हो गया और बलगम में खून आने लगा। हालत ऐसी हो गई थी कि मैं खड़ा भी नहीं हो पा रहा था। साथियों ने मुझे तुरंत एम्स के ही कोविड वॉर्ड में एडमिट कर दिया। फिर मेरा दूसरा टेस्ट हुआ, जो पॉजिटिव आया। यह 4 जून की बात है।
अगले पांच से छ दिन मैं नॉर्मल रहा, लेकिन 11 जून आते-आते एक बार फिर लक्षण काफी ज्यादा बढ़ गए और मेरी सांस फूलने लगी। मेरी बॉडी में ऑक्सीजन का लेवल 91 पर आ गया था। यह बहुत ही गंभीर स्थिति होती है। इसके बाद मुझे तुरंत आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया। किस्मत से आईसीयू में ट्रीटमेंट मिलते ही मैं रिस्पॉन्स कर गया और आठ से दस घंटे में काफी रिलीफ मिला।
इसके बाद मुझे आईसीयू से नॉर्मल वॉर्ड में शिफ्ट कर दिया गया क्योंकि बिना वजह आईसीयू वॉर्ड में रहना और ज्यादा खतरनाक हो जाता है। फिर 26 जून तक नॉर्मल वॉर्ड में ही रहा। कोरोना से जीतने में मुझे करीब 22 दिन लग गए। जब मैं कोरोना से संक्रमित हुआ था तो ये बात घर पर नहीं बताई थी। क्योंकि बताता भी तो वो लोग मुझसे मिल नहीं सकते थे।
उनका दिल्ली आना ज्यादा खतरनाक था, क्योंकि यहां तो बहुत कोरोना फैला हुआ था। डिस्चार्ज होने के दो दिन बाद 28 जून को मैं अपने घर पहुंचा। तभी घर में सबको बताया कि मैं कोरोना पॉजिटिव हो गया था और अब पूरी तरह से स्वस्थ हूं। मेरा करीब दस किलो वजन कम हो गया। पंद्रह दिन घर पर रेस्ट किया।
15 जुलाई से मैंने फिर ड्यूटी ज्वॉइन कर ली है। हालांकि, अभी कोरोना वॉर्ड में ड्यूटी नहीं है। मेरे पापा आर्मी से रिटायर हुए हैं, इसलिए वो छोटी-छोटी बातों से घबराते नहीं। उन्होंने कहा कि बिना डरे काम करो।
मुझे कभी कोरोना का डर नहीं रहा क्योंकि हमारे वॉर्ड में स्वाइन फ्लू, एचआईवी, हेपेटाइटिस तक के पेशेंट आते हैं, जिनका मोर्टेलिटी रेट कोरोना से ज्यादा है और संक्रमण का खतरा भी। हम पूरे प्रिकॉशन लेकर काम कर रहे हैं। कोरोना वॉर्ड में जब भी ड्यूटी लगेगी, मैं फिर करना चाहूंगा। वॉर्ड में ड्यूटी करने पर लगता है कि हम भी कोरोना वॉरियर हैं और कुछ अलग कर रहे हैं।
दूसरी कहानी - डॉक्टर प्रमोद कुमार की जो ठीक होकर दोबारा कोरोना वॉर्ड में मुस्तैद हो गए हैं
मैं 24 मार्च से ही एम्स के ट्रॉमा सेंटर के आईसीयू में पोस्टेड हूं। हर चौथे हफ्ते हमारी ड्यूटी हुआ करती है। कोरोना के क्रिटिकल पेशेंट्स को देखने की जिम्मेदारी हमारी होती है। हम पूरे प्रिकॉशन के साथ वॉर्ड में होते हैं। पीपीई किट पहने होते हैं। 7 घंटे तक कुछ खाना-पीना नहीं। 6 घंटे मरीजों के बीच होते हैं तो कोरोना संक्रमित होने की रिस्क तो होती ही है।
5 जुलाई को मुझे हल्का बुखार आया। उसी दिन मैंने जांच के लिए खून दिया। 8 जुलाई को मैं कोरोना पॉजिटिव आया। मेरा घर झारखंड में है। घर पर मां, पापा और बहन हैं। यहां पर एम्स के हॉस्टल में रहता हूं। घरवालों को बता दिया था, लेकिन सिंपटम्स माइल्ड थे, इसलिए ज्यादा टेंशन की बात नहीं थी। 10 दिनों तक मैं एम्स के वॉर्ड में आइसोलेशन में रहा।
कोरोना ड्यूटी के बाद से ही मैंने बाहर जाना बंद कर दिया था। मार्च से कहीं नहीं गया। सिर्फ हॉस्टल और कोरोना वॉर्ड में ही आना-जाना होता था। मुलाकात भी सिर्फ कलीग्स के साथ ही होती थी। घर जानबूझकर नहीं गया क्योंकि अभी यहां ड्यूटी चल रही है। कोरोना वॉर्ड के अंदर हमें कम से कम ये पता होता है कि कौन कोरोना पॉजिटिव है। हम पूरे प्रिकॉशन के साथ जाते हैं।
वरना जिन लोगों को काम के सिलसिले में बाहर निकलना पड़ रहा है वो तो ये भी नहीं जानते कि कौन पॉजिटिव है और कौन नहीं। हालांकि, अभी मैं ठीक हो चुका हूं और ड्यूटी के लिए कोरोना वॉर्ड में वापस आ चुका हूं। वापस आने से पहले मैंने पढ़ा कि दोबारा संक्रमण का खतरा कितना होता है। यह कितना रिस्की हो सकता है, लेकिन इस बारे में ज्यादा कोई डाटा नहीं है तो मैं तो आ गया फिर ड्यूटी करने।
कोरोना वॉर्ड में मरीज चिढ़ने लगते हैं
कोरोना वॉर्ड में मरीजों का इलाज करने और खुद आइसोलेशन में रहने के दौरान हुए एक्सपीरियंस से पता चलता है कि जो वॉर्ड में या आइसोलेशन में होता है वो चिढ़ने लगता है। क्योंकि कोई मिलने-जुलने वाला नहीं होता। किसी से बात नहीं हो पाती। आईसीयू में तो मॉनिटर की आवाज आते रहती है। पीपीई किट पहनकर डॉक्टर आते रहते हैं। कई बार आपके आसपास ही किसी की डेथ भी हो जाती है, यह सब देखकर किसी का भी इरिटेट होना एक नॉर्मल बात है।
आईसीयू में कई बार कुछ पेशेंट डेलिरियम में चले जाते हैं। यानी अपना होश खो बैठते हैं। ऐसा उन लोगों के साथ ज्यादा होता है जो मेंटली प्रिपेयर नहीं होते। मैं भी जब आइसोलेशन में था तो थोड़ा इरिटेट हो गया था। ऐसे में जरूरी है कि हम घरवालों से फोन पर ज्यादा से ज्यादा बात करते रहें। मोबाइल पर कुछ न कुछ करते रहें।
काम करने की कंडीशन है तो करें या फिर कुछ पढ़ते रहें। खुद को कहीं न कहीं व्यस्त रखना जरूरी है वरना कोरोना ट्रीटमेंट का ये पीरियड काटना बहुत मुश्किल हो जाता है। खैर, मैं अपनी ड्यूटी पर दोबारा लौट चुका हूं। घरवालों ने कहा था कि हो सके तो कोरोना के बजाए किसी दूसरे वॉर्ड में ड्यूटी लगवा लो, लेकिन अभी हम नई उम्र के हैं। हमें गंभीर संक्रमण होने की आशंका कम है। पूरे प्रिकॉशन लेते हुए इलाज कर रहे हैं।
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इस बार ओटीटी पर एक साथ पांच फिल्में रिलीज हो रही हैं, क्या दर्शक एक वीकेंड पर पांच फिल्में देख सकते हैं? https://bit.ly/2P7Ru23
अलग -अलग ओवर द टॉप (ओटीटी) माध्यमों पर इस वीकेंड पांच फिल्में रिलीज हो रही हैं। ‘शकुंतला देवी’ एमेजॉन पर आ रही है। ‘रात अकेली है’ नेटफ्लिक्स, ‘यारा’ जी5 पर, ‘माई क्लाइंट्स वाइफ’ शेमारूमी पर और ‘लूटकेस’ डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर आ रही है।
ये फिल्म प्रदर्शन शैली सिनेमाघरों वाली मारामारी की याद दिला रही है, जहां किसी बड़े वीकेंड पर दो या तीन फिल्में एक साथ रिलीज होती थीं। सालभर मेंं हमारे देश में लगभग 1000 से 1400 फिल्में रिलीज होती हैं और रिलीज के वीकेंड मात्र 52 होते हैं, ऐसे में थिएटर्स में तो यह भीड़भाड़ समझ आती है, लेकिन ओटीटी तो बिल्कुल अलग तरह का माध्यम है। वहां एक बार फिल्म आने के बाद स्थायी रूप से उपलब्ध रहती है। ऐसे में एक वीकेंड पर पांच फिल्में रिलीज़ करने का औचित्य समझ से परे है, मैं हैरान हूं कि एक साथ रिलीज के पीछे क्या तर्क और बिज़नेस स्ट्रेटजी है?
ओटीटी पर रिलीज करना और उनका प्रचार करके फिल्म के बारे में दर्शकों को बताना दो अलग बातें हैं। बड़े स्टार्स वाली बड़ी फिल्म तो इस तरह अपनी मौजूदगी दर्ज करा लेंगी, लेकिन छोटी फिल्म्स फिर भीड़ में खो जाएंगी। शकुंतला देवी में विद्या बालन हैं, ऊपर से एमेजॉन जैसा प्लेटफॉर्म है। ऐसे में इस फिल्म को तो भरपूर पब्लिसिटी मिल गई है। यही अनुकूल परिस्थिति ‘रात अकेली है’ के साथ है। यहां बड़े नाम हैं। नवाज हैं, राधिका आप्टे भी हैं। मगर बाकी का क्या? सवाल है कि अगर फिल्में बनाने में काफी प्लानिंग होती है, तो रिलीज करने को लेकर बेहतर प्लानिंग क्यों नहीं हो सकती।
यह प्रगतिशील सोच है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर फिल्म करोड़ों घरों तक पहुंचेगी, लेकिन अगर लोगों को पता ही नहीं चलेगा कि कोई फिल्म किसी प्लेटफॉर्म पर आई है कि नहीं, ऐसे में वह सफल कैसे होगी। ओटीटी पर ही लोगों के पास अनगिनत विकल्प हैं। ऐसे में ये फिल्म ही देखी जाएंगी, कैसे तय होगा।
सिनेमाघरों के दोबारा खुलने पर यकीनन सब पहले जैसा हो जाएगा। पर इन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स के लिए नई बदलाव वाली रणनीति होनी चाहिए। दर्शकों के साथ संदेश आदान-प्रदान के नवीन तरीके विकसित होने चाहिए। जहां तक दर्शकों को दूसरे प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ फिल्मों के पता चलने का सवाल है, तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन इसमें यह तय नहीं होता कि वह अपना प्लेटफॉर्म बदलकर उस फिल्म के लिए दूसरे माध्यम पर जाए। थिएटर्स में वीकेंड्स पर चार-पांच फिल्में आती थीं, उस स्थिति में किसी को फायदा नहीं होता था। यही चीज़ इन माध्यमों पर दोहराई जा रही है। जब इतना शोर होगा, तो दर्शक भी कन्फ्यूज हो जाएगा।
अगर वाकई मनोरंजन की दुनिया बदल रही है, तो जाहिर तौर पर रिलीज की रणनीति भी अलग होनी चाहिए। इसमें नए प्रयोग किए जा सकते हैं जैसे कि शुक्रवार के अलावा नए कंटेंट के लिए आप मंगलवार आ सकते हैं। ताकि शुक्रवार से सोमवार तक लोग एक कंटेंट देख लें। मंगलवार से दूसरा कंटेंट देखें। ऐसे में एक ही टाइम पर रिलीज की मारामारी नहीं रहेगी। इसमें हर्ज क्या है? मैं भी डिजिटल पर ही काम करती हूं। यहां मालूम नहीं होता कि कौन सी चीज क्लिक कर जाए। जैसा फिल्मों के साथ भी है कि नहीं मालूम कौन सी चल जाए।
दुनियाभर में फिल्में शुक्रवार को रिलीज़ करने का रिवाज़ रहा है, मगर शुक्रवार का इंतजार जरूरी नहीं। आज ज्यादातर काम वर्क फ्रॉम होम हो रहा है। क्या पता लोग बुधवार को ही कंटेंट देख लें! अगर रविवार की दोपहर को कंटेंट रिलीज़ करते हैं, तो इससे ओटीटी माध्यमों को क्या फर्क पड़ेगा? एक ही वीकेंड पर कौन इतनी फिल्में देख पाएगा। ऐसे में एक दो तो मिस होने वाली हैं। जो फिल्में मैं देख पाती, वह मिस होगी। इसमें फायदा किसका है? (ये लेखिका के अपने विचार हैं।)
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‘नई’ भाजपा वैसी नहीं है, जैसा वह दावा करती थी; अब दिखने लगा है कि भाजपा का ‘कांग्रेसीकरण’ हो रहा https://bit.ly/3ggqpWk
भारतीय राजनीति में आप कहां खड़े हैं, यह इसपर निर्भर है कि आप कहां बैठते हैं। इसका ताजा उदाहरण हैं राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र। मिश्र 1998 में उस भाजपा प्रतिनिधि मंडल का हिस्सा थे जो उप्र के तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी द्वारा कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त करने के खिलाफ धरने पर बैठा था।
अब कांग्रेस के विधायक जो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तुरंत सत्र बुलाने की मांग को मिश्र द्वारा खारिज करने के विरोध में धरने पर बैठे। राज्यपाल ने मांग मान ली, लेकिन सत्र बुलाने के लिए 21 दिन के नोटिस पीरियड पर जोर दिया है, जो कि विधायकों की खरीद-फरोख्त व एक और कांग्रेस सरकार को गिराने के लिए पर्याप्त समय होगा। स्पष्ट है कि मिश्र की निष्ठा संविधान में नहीं, केंद्र में है।
मिश्र विवादों में आने वाले पहले राज्यपाल नहीं हैं। 2017 में गोवा में मृदुला सिन्हा और मणिपुर में नजमा हेपतुल्लाह ने भाजपा सरकारों को जल्दबाजी में शपथ दिलाई। कर्नाटक में 2018 में वजूभाई वाला, जो कि गुजरात बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष थे, ने बीएस येद्दुरप्पा को बिना बहुमत सरकार बनाने का आमंत्रण दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद सरकार 48 घंटे में ही गिर गई। महाराष्ट्र में 2019 में बीएस कोशियारी ने अलसुबह देवेंद्र फडनवीस को शपथ दिलवा दी थी। इन सभी राज्यपालों में एक बात समान है। ये सभी बीजेपी के ‘मार्गदर्शक मंडल’ राजनेता हैं, जिनके लिए राज भवन आलीशान रिटायरमेंट होम की तरह है।
ये संवैधानिक प्राधिकारी अपने पक्षपाती कामों के बचाव में कहते हैं कि वे तो बस कांग्रेस पार्टी द्वारा स्थापित पुरानी परंपरा निभा रहे हैं, जिसमें हमेशा राज्यपाल कार्यालय का दुरुपयोग होता था। एक तरह से यह भाजपा के ‘कांग्रेसीकरण’ का ही सबूत है।
इन्होंने बाकियों से अलग होने का जो दावा जोर-शोर से किया था, उसका मतलब सिर्फ कांग्रेस का विकल्प बनना नहीं बल्कि एक वैकल्पिक राजनीतिक संस्कृति देना भी था। वाजपेयी-आडवाणी के दौर में ‘मूल्य-आधारित’ राजनीति का दावा करने वाली भाजपा में अब ऊंचे मोल की राजनीति हो रही है, जहां राजनीतिक साजिशों के साथ कीमत जुड़ी है।
उदाहरण के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गहलोत के भाई को खाद घोटाले के 2007 के एक मामले में समन भेज दिया। ईडी पर भाजपा के सहयोगी और राजनीतिक बदला लेने का हथियार होने के आरोप लगते रहे हैं।
यहां भी बचाव में यही कहा जा रहा है कि कांग्रेस का भी सरकारी एजेंसियों के इस्तेमाल का ट्रैक रिकॉर्ड रहा है। लेकिन अगर कांग्रेस के शासन में सीबीआई पिंजरे का तोता थी तो क्या ईडी भाजपा शासन में खूंखार कुत्ता है? फिर अलग होने का दावा करने वाली पार्टी का क्या हुआ?
राजस्थान में पार्टी बदलने के लिए भारी मात्रा में पैसे दिए जाने के आरोपों का भी विश्लेषण करें। भले ही यह अटकलबाजी हो, लेकिन दल-बदल के पीछे मंत्री बनने के लालच से इनकार नहीं कर सकते। जिन्होंने पार्टी बदली उन्हें नवाजा गया, फिर वह गोवा रहा हो, मणिपुर, कर्नाटक या एमपी।
पैसे की ताकत के नशे को कांग्रेस के पतन का कारण माना गया और इसके विपरीत भाजपा नेताओं की सादगीपसंद छवि मानी गई। अब दल बदलने के लिए भड़काने वाली भाजपा के अलग होने के दावे का क्या हुआ?
सच्चाई यह है कि भाजपा पूर्ण प्रभुत्व की लालसा में आदर्शवाद के किसी भी अवशेष से समझौता कर सकती है। वह संसद में हो या विधानसभा या फिर नगर निगमों में, भाजपा की जितनी ‘जीत’ रही हैं, वे दरअसल पूर्व कांग्रेसी रहे हैं, जो भगवा लहर में बह गए।
फिर वे मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह हो, गोवा के उपमुख्यमंत्री चंद्रकांत कावलेखर, मप्र में शिवराज सरकार के आधे मंत्री हो, असम के हेमंत बिस्व सरमा हों या फिर अरुणाचल के मुख्यमंत्री प्रेमा खांडू। ये सभी भाजपा में शामिल होने से पहले लंबे समय कांग्रेस में रहे। फेहरिस्त लंबी है।
यह ‘नई’ भाजपा की हिंसक, अनैतिक प्रवृत्ति का खुलासा भी करता है, जो किसी भी तरह अपने विरोधी को तबाह करना चाहती है। इस प्रक्रिया में कभी बहुत अनुशासित रहा भाजपा का ढांचा और वैचारिक सामंजस्य खतरे में है। जब आप अवसरवादिता को बढ़ावा दें और नैतिक व्यवहार को कमजोर करें तो आप भविष्य के संभावित राजनीतिक खतरों को जन्म देते हैं।
उधर राजनीति की कठोर वास्तविकताओं से आरएसएस का भी अपनी राजनीतिक शाखा पर से नियंत्रण लगातार कम हो रहा है। जहां पहले नैतिक अधिकार आरएसएस सरसंघचालक का माना जाता था, अब मोदी-शाह युग में वे स्पष्टरूप से दूसरे पायदान पर आ गए हैं।
वहीं अब संस्थागत नियंत्रण लगभग पूरा हो चुका है। एक चुनाव आयुक्त, जो असहमति जताते हैं तो उन्हें गैरजरूरी पद पर मनिला भेज देते हैं। एक सुप्रीम कोर्ट जज को रिटायरमेंट के कुछ ही महीनों में राज्यसभा के लिए नामित कर देते हैं, जबकि प्रधानमंत्री की तारीफ करने वाले एक मौजूदा जज राजनीति के विवादास्पद मामलों की सुनवाई करते हैं।
संसद एक नोटिस बोर्ड बनकर रह गई है। और मीडिया का एक बड़ा हिस्सा चीयरलीडर की भूमिका में है। इस बीच भाजपा विस्तार कर रही है। कल मध्यप्रदेश, आज राजस्थान और पता नहीं कल कौन-सा विपक्ष शासित राज्य। क्या विरोधी आवाज के लिए कोई जगह बची है? (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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20 शहरों में देश के 49% मरीज, लेकिन टेस्ट सिर्फ 24%; इसीलिए संक्रमण दोगुना, बड़े शहरों में संक्रमण की दर 17% हुई https://bit.ly/2XbuW4X
देश के सबसे ज्यादा कोरोना मरीजों वाले 20 शहरों में संक्रमण दर 17% हो चुकी है, जो राष्ट्रीय दर (8.7%) से दोगुनी है। यानी, देश में हर 100 टेस्ट में 8-9 मरीज मिले हैं, जबकि इन शहरों में 17 मरीज मिले हैं। कारण- टेस्ट कम होना।
इन शहरों में देश के कुल 49% मरीज हैं, जबकि देश में कुल टेस्ट में इन शहरों के मरीजों की हिस्सेदारी सिर्फ 24% है। इसीलिए, संक्रमण दर ऊंची है। लेकिन, अच्छी बात यह है कि इन शहरों में 70% मरीज ठीक हो चुके हैं। यह दर राष्ट्रीय औसत से 6% ज्यादा है। यह आंकड़ा इसलिए अहम है, क्योंकि देश में रिकवरी रेट 6% बढ़ने में 45 दिन लगे हैं। जिन शहरों में मरीज ज्यादा हैं, रिकवरी रेट भी वहीं ज्यादा है।
इसलिए बढ़ रही चिंता -
- चिंता की बात यह कि जयपुर-जोधपुर को छोड़कर सभी शहरों में संक्रमण की दर 5% से ज्यादा। (डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 5% से ज्यादा संक्रमण का मतलब है कि टेस्ट कम हो रहे हैं)
- ठाणे में हर 100 टेस्ट में 40 से ज्यादा मरीज मिल रहे हैं, यह दर ब्राजील के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा।
दुनिया में एक दिन में रिकॉर्ड 2.90 लाख नए मरीज मिले
दुनिया में कोरोनाकाल के साढ़े चार महीने में पहली बार बुधवार को एक दिन में रिकॉर्ड 2,90,393 कोरोना मरीज मिले। सबसे ज्यादा 70,869 मरीज ब्राजील और 66,921 मरीज अमेरिका में मिले। यानी दुनिया के 47.4% मरीज सिर्फ इन दो देशों में मिले हैं।
अगर इनमें भारत के 52,656 मरीज भी जोड़ दें तो यह संख्या 1,90,464 बनती है। यानी दुनिया के 66% मरीज सिर्फ ब्राजील, अमेरिका और भारत में मिलने लगे हैं। दुनिया में बुधवार को कुल 7,032 मौतें हुईं। 21 अप्रैल के बाद सिर्फ दो बार मौतों का आंकड़ा 7 हजार के ऊपर गया है।
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सबसे घातक बॉर्डर हरामीनाला तीन तरफ से सील; बीएसएफ ने राेड, फ्लड लाइट, टावर से खत्म की पाक से घुसपैठ की गुंजाइश https://bit.ly/39ESvbi
बीएसएफ ने गुजरात के पश्चिमी बॉर्डर की सबसे खतरनाक सीमा से पाकिस्तानी घुसपैठ को पूरी तरह ब्लॉक कर दिया है। अथाह दलदल वाले हरामी नाले तक जहां सुरक्षा करना मुश्किल था, उसे तीन ओर से सील कर दिया है। बीएसएफ ने 22 किलोमीटर लंबी फ्लड लाइट से लैस सड़क बना दी, जो नाले के मुहाने तक जाती है और इसी सड़क किनारे खड़े कर दिए वॉच/ओपी टॉवर और पोस्ट (बीओपी)।
चूंकि यहां दलदल से आया नहीं जा सकता, सिर्फ हरामी नाले से घुसपैठ हो सकती थी। यह 22 किमी लंबा नाला 1.5 किमी से ज्यादा चौड़ा है। चार हजार वर्ग किमी इसी दलदली क्षेत्र में है 92 किमी लंबा सर क्रीक इलाका, जिस पर पाकिस्तान अपना कब्जा बताता रहा है।
पहले लखपत पोस्ट से घुसपैठ को रोकना था बहुत मुश्किल
हरामी नाले तक जाने के लिए जवान ऑल टरेन व्हीकल, बोट और पैदल चलकर पहुंचते थे। ये सफर 25 किमी दूर लखपत कोट से शुरू होता था अन्यथा कोटेश्वर होकर आना पड़ता था। भारतीय बीओपी भी लखपत के पास ही थी। यहां से सीधी रोड कनेक्टिवटी पर काम शुरू हुआ। बिजली की लाइन बिछाई और फ्लड लाइट्स भी लगाई गईं। अब पिलर संख्या 1175 के पास नई बीओपी का निर्माण कर दिया। सड़क के छोर पर ओपी टॉवर हैं।
55 साल में 30 फीट से डेढ़ किमी चौड़ा हुआ नाला
- 965 से पहले ये नाला 30-35 फीट चौड़ा था, अब इसका फैलाव डेढ़ किमी तक हो गया है।
- इसका दूसरा नाला 700 मीटर और तीसरा 500 मीटर चौड़ा है। तीनों का 22 किमी लंबा चैनल।
- क्रीक में 2 बार भारत और 2 बार पाकिस्तान में बहाव होता है।
बेपरवाह पाक रेंजर्स, हरामी नाले तक भेज रहे मछुआरे
बीएसएफ की मौजूदगी नहीं होने से पहले पाकिस्तानी आसानी से हरामी नाला में फिशिंग और घुसपैठ करते थे, लेकिन बीएसएफ ने इंटरनेशनल बॉर्डर के सहारे सब रोक दिया। हरामी नाले के होरिजेंटल व वर्टिकल दोनों प्रवाह के चैनल को सील कर दिया है। इतनी सख्ती के बावजूद पाकिस्तानी मछुआरे जीरो लाइन तक फिशिंग करने आ रहे हैं। पाकिस्तानी रेंजर्स मछुआरों को 5 से 10 दिन की अवैध पर्ची देकर भेज दिया करते हैं।
हमने हरामी नाले को तीन तरफ से सील कर दिया है
सरक्रीक इलाके में स्थित हरामी नाला सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ था। यहां से पाकिस्तानी मछुआरे घुसते थे। घुसपैठ की भी आशंका रहती थी। अब हमने यहां नाले को तीन ओर से सील कर दिया है। नाले के मुहाने तक सड़क बनाई गई है। निगरानी के लिए यहां नए निर्माण भी किए जा रहे हैं। - जीएस मलिक, आईजी, बीएसएफ गुजरात फ्रंटियर
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