अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की जज रूथ बादेर गिन्सबर्ग के निधन पर पॉलिटिकल एक्सपर्ट डेविड फ्रेंच ने लिखा- जीवन में इतनी कंपकंपी कभी महसूस नहीं की, जितनी आज कर रहा हूं। गिन्सबर्ग को सियासी दायरे में नहीं समेटा जा सकता। लेकिन, आज गिन्सबर्ग के नाम पर सियासत ही हो रही है। विस्कॉन्सिन में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के समर्थकों ने वोटिंग के दौरान खलल डाला। ट्रम्प- चार साल और... के नारे लगाए। यह लोग असामाजिक तत्व नहीं हैं। लेकिन, ये हो रहा है और डरा भी रहा है।
क्या कर रहे हैं रिपब्लिकन्स
जिन राज्यों में मतदान निर्णायक हो सकता है, वहां हजारों के संख्या में ट्रम्प समर्थक पहुंचने की योजना बना रहे हैं। राष्ट्रपति इन लोगों का समर्थन कर रहे हैं। पिछले महीने उन्होंने कहा था- हम मतदान पर नजर रखेंगे। जब जहां भी जाएंगे, हम वहां होंगे। कितनी हैरानी की बात है कि ट्रम्प ने लगातार दो बार लोगों से कहा कि वे दो बार वोटिंग करें। एक बार मेल से और दूसरी बार खुद पोलिंग बूथ जाकर। ये जानते हुए भी कि ये गैरकानूनी है।
क्या ये वास्तव में मुकाबला है
अब सवाल ये है कि क्या ये वास्तव में लोकतांत्रिक मुकाबला है। क्या अमेरिका में अब भी नियमों को पालन किया जा रहा है। गिन्सबर्ग के निधन के बाद राष्ट्रपति ने एमी कोने बैरेट को उनकी जगह चुना। क्या सिर्फ इसलिए कि वे पारंपरिक कैथोलिक हैं और गर्भपात पर उनके विचार रिपब्लिकन्स से मेल खाते हैं। सवाल बड़े हैं। क्योंकि, चुनाव का दिन करीब है। मैं कई दिनों से कई बातों पर विचार कर रहा हूं।
ये सिरहन क्यों
बुधवार को ट्रम्प ने कहा- मैं शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता नई सरकार को सौंपने का वादा नहीं कर सकता। ये चौंकाने वाला है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वे गलत कह रहे हैं। वजह भी है। ट्रम्प मेल इन बैलट्स और वोटिंग में धांधली की आशंकाएं अभी से जाहिर कर रहे हैं। आप उनका दावा देखिए। ट्रम्प कहते हैं- सत्ता सौंपने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। यही सरकार जारी रहेगी। इसलिए मैं कह रहा है कि अमेरिका संकट में है। रिपब्लिकन्स तेजी से फिर सत्ता हथियाने की तरफ भाग रहे हैं, वे ब्रेक नहीं लगाते।
मिसाल सामने है
जस्टिस गिन्सबर्ग के निधन के बाद के हफ्ते को ही ले लीजिए। उम्मीद थी कि कुछ रिपब्लिकन सीनेटर तो आवाज उठाएंगे। उम्मीद थी कि वे कहेंगे कि संविधान को ध्यान में रखा जाए और चुनाव होने तक नए जज की नियुक्ति न की जाए। कोई तो ये कहेगा- बहुत हो चुका। अब बंद कीजिए ये सब। रिपब्लिकन पार्टी के एक समर्थक कहते हैं- यह सब मौके का फायदा उठाने के लिए किया जा रहा है। गिन्सबर्ग मामले में जो रिपब्लिकन्स का विरोध कर रह हैं, अगर वो आज सत्ता में होते तो यही करते। कुछ डेमोक्रेट्स कहते हैं कि सत्ता में आने के बाद कोलंबिया और प्यूर्टो रिको को राज्य घोषित किया जाए ताकि सीनेट में पार्टी मजबूत हो सके।
कमजोर हो रहा है अमेरिका
दुनिया का सबसे अमीर और ताकतवर अमेरिका कमजोर हो रहा है। कोरोना से देश में दो लाख लोग मारे जा चुके हैं। इस मामले में हम ग्लोबल लीडर हैं। अटलांटिक मैगजीन ने लिखा- ट्रम्प कहते हैं कि सत्ता जारी रहेगी। इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि चुनाव किस तरह होने वाला है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि अमेरिकी लोग क्या सोचते हैं। इलेक्शन लॉ के स्टूडेंट्स या एक्सपर्ट सोच रहे हैं कि संवैधानिक संकट सामने आने वाला है। हम सुरक्षित नहीं हैं। न्यूयॉर्कर में जेफ्री टोबिन ने लिखा था- चुनाव में हिंसा हो सकती है। दोनों पार्टियों के समर्थकों में टकराव हो सकता है
सटीक बात
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के इरविन स्कूल ऑफ लॉ के प्रोफेसर रिचर्ड हैसन बहुत सटीक लेकिन फिक्रमंद करने वाली बात कहते हैं। हैसन के मुताबिक- अपनी पूरी जिंदगी के दौरान मैंने अमेरिकी लोकतंत्र की इतनी चिंता कभी नहीं की, जितनी आज कर रहा हूं। वे सही कह रहे हैं। कहीं गुटों की विचारधारा हावी है तो कहीं अकेला आदमी पागलपन दिखा रहा है। अमेरिका में राष्ट्रपति तानाशाह नहीं हो सकता। लेकिन, ये भी सही है कि ट्रम्प अमेरिका को डेमोक्रेट्स प्रभाव वाले यानी ब्लू राज्य और रिपब्लिकन दबदबे वाले रेड स्टेट्स के रूप में देखते हैं।
फिर क्या करना होगा
अगर जो बाइडेन चुनाव जीतते हैं। यानी डेमोक्रेट्स सत्ता में आते हैं तो इसका मतलब यही नहीं होना चाहिए कि वे रिपब्लिकन्स को सजा दें या उन्हें परेशान करें। उन्हें अमेरिका का गौरव वापस लाने के लिए काम करना चाहिए। शायद हमें कुछ ऐसी चीजों को खत्म करने की जरूरत भी है जो जख्म भरने में परेशानी बनती हैं।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://bit.ly/309KOWW
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
WE SHARE YOU THE LATEST NEWS.
YOU CAN COMMENT IN WHAT WAY IT WOULD BE EASIER TO SHARE THE NEWS AND WILL BE MORE COMFORTABLE TO YOU