कोरोना के चलते पिछले 5 महीने से दुनियाभर के ज्यादातर स्कूल-कॉलेज बंद हैं। भारत सरकार ने भी 30 सितंबर तक इन्हें बंद रखने का फैसला किया है। उधर महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र सरकार को सुझाव दिया है कि जनवरी 2021 से स्कूल और कॉलेज खोले जाए, ओडिशा ने भी दशहरे तक स्कूल-कॉलेज बंद रखने का फैसला किया है, बाकी राज्यों में भी कमोबेश यही हालात हैं।
लॉकडाउन के दौरान पढ़ाई प्रभावित न हो इसलिए कई देशों ने रिमोट लर्निंग सिस्टम या ऑनलाइन क्लासेज की व्यवस्था की। मोबाइल, टीवी और रेडियो के जरिए छात्रों को पढ़ाया जा रहा है। हालांकि, बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे हैं जिनके पास ऑनलाइन क्लास की सुविधा नहीं है, उनके पास मोबाइल और टीवी नहीं है। खासकर के गांवों में, अगर मोबाइल है भी तो इंटरनेट नहीं है, कई इलाकों में मोबाइल चार्ज करने के लिए बिजली भी नहीं है।
हाल ही में आई यूनिसेफ, यूनेस्को और वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में करीब 150 करोड़ स्टूडेंट्स कोरोना से प्रभावित हुए हैं, इनमें से 47 करोड़ छात्र (31%) की पढ़ाई नहीं हो पा रही है। ईस्ट अफ्रीका और साउथ अफ्रीका में 49 फीसदी छात्रों को ऑनलाइन एजुकेशन की सुविधा नहीं मिल पा रही है। लैटिन अमेरिका में स्थिति जरूर बेहतर है। वहां करीब 9 फीसदी ही छात्र ऐसे हैं जो ऑनलाइन एजुकेशन का फायदा नहीं उठा पा रहे हैं।
दुनियाभर के 110 देशों में अलग अलग लेवल यानी प्री प्राइमरी, प्राइमरी और अपर क्लासेस के बच्चों को किस तरह से और किन माध्यमों से पढ़ाया जा रहा है, इसको लेकर सर्वे किया गया है। इंटरनेट के माध्यम से पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स की संख्या टीवी और रेडियो के जरिये पढ़ने वालों से ज्यादा है। प्री प्राइमरी में 42 फीसदी, प्राइमरी में 74 फीसदी और अपर सेकेंडरी लेवल पर 77 फीसदी स्टूडेंट्स इंटरनेट के जरिए पढ़ाई कर रहे हैं।
ऑनलाइन एजुकेशन का फायदा शहरी क्षेत्रों के बच्चे तो उठा रहे हैं, लेकिन गांवों में कम ही बच्चों तक ये सुविधा पहुंच पा रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, गांवों में हर चार में से तीन बच्चे ऑनलाइन एजुकेशन से दूर हैं। इसमें गरीब तबके के बच्चे ज्यादा हैं। मिनिमम इनकम वाले देशों में 47 फीसदी और मिडिल इनकम वाले देशों में 74 फीसदी बच्चे कोरोना की वजह से एजुकेशन से दूर हो गए हैं।
अगर भारत की बात करें तो कोरोना की वजह से करीब 15 लाख स्कूल बंद हुए हैं, जहां 28 करोड़ बच्चे पढ़ते हैं। इसमें 49 फीसदी लड़कियां हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सिर्फ 24 फीसदी घरों में ही ऑनलाइन एजुकेशन की सुविधा उपलब्ध है।
वहीं, एनसीईआरटी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 27 फीसदी छात्रों के पास मोबाइल या लैपटॉप नहीं है। 28 फीसदी बच्चों के पास फोन चार्ज करने के लिए बिजली नहीं है। इसके अलावा जिनके पास ऑनलाइन एजुकेशन की सुविधा है, उन्हें भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
एनसीईआरटी के सर्वे में 33 फीसदी बच्चों ने बताया कि वे अपनी पढ़ाई पर फोकस नहीं कर पा रहे हैं। जबकि कई ऐसे बच्चे हैं जिन्हें साइंस और मैथ्स के सब्जेक्ट में ज्यादा दिक्ककत आ रही है, ऑनलाइन उनके डाउट्स क्लियर नहीं हो पा रहे हैं।
कोरोनाकाल में बड़ी संख्या में नौकरियां गई हैं, लोगों के बिजनेस बंद हुए हैं। जिसका सीधा- सीधा असर एजुकेशन पर भी पड़ा है। इससे पहले एजुकेशन को लेकर अप्रैल में यूनेस्को की एक रिपोर्ट आई थी जिसमें कहा गया था कि कोरोना के चलते दुनियाभर के करीब 1 करोड़ बच्चे कभी स्कूल नहीं जा पाएंगे। एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना से पहले दुनिया में 25 करोड़ बच्चे से शिक्षा से वंचित थे। इस तरह देखें तो 26 करोड़ बच्चे अब कभी स्कूल जाने की स्थिति में नहीं होंगे।
हर पांच में से दो स्कूलों के पास साफ- सफाई के लिए जरूरी सुविधाएं नहीं हैं
अगर स्कूल-कॉलेज खोल दिए जाए तो इन समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है। लेकिन, सवाल यह है कि क्या इसके लिए स्कूल-कॉलेज तैयार हैं, क्या उनके पास सुविधा हैं। यूनिसेफ और डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, दुनिया में हर पांच में से दो स्कूलों के पास साफ- सफाई के लिए जरूरी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं।
करीब 81 करोड़ बच्चों के पास हैंडवाश और सैनिटाइजर नहीं है। इसमें से 35 करोड़ के पास हाथ धोने के लिए साबुन तो है लेकिन 46 करोड़ के पास पानी नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक, हर तीन में से एक स्कूल में पीने के लिए पानी की भी व्यवस्था पर्याप्त नहीं है।
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