कोर्ट और जजों की अवमानना के मामले में सुप्रीम कोर्ट आज सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण को सजा सुनाएगा। इससे पहले देशभर के 122 लॉ स्टूडेंट्स ने सीनियर कोर्ट को इमोशनल लेटर लिखा है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) एसए बोबडे और दूसरे जजों को लिखी चिट्ठी में कहा गया है कि इस मामले में कोर्ट अपने फैसले पर फिर से विचार करे।
'लोगों में भरोसा बहाल कर आलोचना का जवाब दे कोर्ट'
लॉ स्टूडेंट्स ने कहा है कि अदालत को लोगों में भरोसा बहाल कर आलोचना का जवाब देना चाहिए। जब आलोचना पीड़ा से उठे और न्याय की मांग करे, तो कोर्ट को अवमानना का आरोप नहीं लगाना चाहिए। वो भी ऐसे व्यक्ति पर, जो उसी गहराई से न्याय मांग रहा हो, जो वह दूसरों के लिए मांगता रहा है। चिट्ठी में लिखा है कि लंबे समय से प्रशांत भूषण को भ्रष्टाचार के खिलाफ कोर्ट में लड़ते देखा है। कानून और राष्ट्र निर्माण में उन्होंने अच्छा काम किया है।
'दरकिनार किए गए लोगों के लिए था ट्वीट'
लॉ स्टूडेंट्स ने कहा कि जिन दो ट्वीट के आधार पर भूषण को कंटेम्प्ट का दोषी ठहराया गया है, वे ट्वीट उस उस तबके के लोगों की आवाज उठाने के लिए थे, जिनकी अनदेखी की गई। इनसे कोर्ट की पवित्रता को नुकसान नहीं पहुंचता।
प्रशांत भूषण ने माफी मांगने से इनकार किया
सुप्रीम कोर्ट ने महीने की शुरुआत में ही भूषण को उनके अवमानना का दोषी ठहराया था और फैसला सुरक्षित रख लिया था। अदालत ने पिछले हफ्ते भूषण को बिना शर्त माफी मांगने की मौका दिया, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया था। भूषण ने कहा था माफी मांगी तो यह अंतरात्मा और कोर्ट की अवमानना होगी।
भूषण के इन 2 ट्वीट को कोर्ट ने अवमानना माना
पहला ट्वीट: 27 जून- जब इतिहासकार भारत के बीते 6 सालों को देखते हैं तो पाते हैं कि कैसे बिना इमरजेंसी के देश में लोकतंत्र खत्म किया गया। वे (इतिहासकार) सुप्रीम कोर्ट खासकर 4 पूर्व सीजेआई की भूमिका पर सवाल उठाएंगे। दूसरा ट्वीट: 29 जून- इसमें वरिष्ठ वकील ने चीफ जस्टिस एसए बोबडे की हार्ले डेविडसन बाइक के साथ फोटो शेयर की। फोटो में सीजेआई बिना हेलमेट और मास्क के नजर आ रहे थे। भूषण ने लिखा था कि सीजेआई ने लॉकडाउन में अदालतों को बंद कर लोगों को इंसाफ देने से इनकार कर दिया।
भूषण को पहले भी अवमानना का नोटिस दिया गया था
प्रशांत भूषण को नवंबर 2009 में भी सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना का नोटिस दिया था। तब उन्होंने एक मैगजीन को दिए इंटरव्यू में सुप्रीम कोर्ट के जजों पर कमेंट किया था।
मध्यप्रदेश में लगातार हो रही बारिश और आसपास की नदियों का पानी नर्मदा में इकट्ठा होने के कारण नर्मदा नदी रौद्र रूप दिखा रही है। रविवार को दिनभर मोरटक्का पुल नर्मदा की बाढ़ में डूबा रहा। वहीं कई जगह निचली बस्तियों में लोग फंसे हुए हैं, जिन्हें सेना के हेलिकॉप्टर की मदद से सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया जा रहा है। होशंगाबाद में सड़कों पर नाव चलाना पड़ रही है।
रविवार सुबह 10 बजे हेलीकॉप्टर से ली गई यह भोपाल के नसरुल्लागंज के गांव सातदेव की है। 5000 की आबादी वाला नर्मदा किनारे बसा यह गांव बाढ़ के पानी में घिरकर टापू बन गया है। एनडीआरएफ और सेना ने 80% आबादी को रेस्क्यू कर टीगाली गांव में शिफ्ट कर दिया है।
निचली बस्तियों में भरा पानी
मध्यप्रदेश में लगातार हो रही बारिश से कई नदियां उफान पर हैं। कई जगह निचली बस्तियों में लोग फंस गए हैं। फोटो सीहोर जिले की है जहां पर निचली बस्तियों में पानी भर गया है। ऐसे में लोग अपना सामान समेटने में लगे हुए हैं। इसी दौरान एक छोटी बच्ची अपने भाई को पीठ पर लादकर सुरक्षित स्थान पर ले जा रही है।
24 घंटे में 4 इंच बारिश
24 घंटे में उज्जैन में 4 इंच से अधिक बारिश हुई। एक सप्ताह में दूसरी बार शिप्रा नदी उफान पर आ गई है। इससे रामघाट स्थित कई मंदिर शिप्रा नदी में डूब गए हैं।
उद्घाटन से पहले ही बहा पुल
भारी बारिश के चलते मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में बड़ा नुकसान हुआ है। 2 हजार मकान क्षतिग्रस्त हुए हैं। यहां शुक्रवार शाम को लखनादौन क्षेत्र में बना एक निस्तानी बांध बह गया, जबकि रविवार को भीमगढ़ से सुनवारा के बीच 3.7 करोड़ रुपए की लागत से बना पुल बहाव में गिर गया। इस पुल का अभी उद्घाटन होना था। इसका निर्माण कार्य पूरा करने की डेडलाइन 30 अगस्त 2020 थी, लेकिन इसी दिन यह ढह गया।
बप्पा से बच्ची ने मांगी मन्नत
फोटो हरियाण के हिसार की है। रविवार को गणपति बप्पा का विसर्जन किया जा रहा था इससे पहले छोटी बच्ची ने गजानन के कान में मन्नत मांगी। इस दौरान भक्तों ने गणपति बप्पा मोरिया अगले बरस तू जल्दी आना... के जयकारे लगाए।
कोरोना काल में ताजिया
दतिया में मोहर्रम पर मुस्लिम समाज के लोगों ने लाला के ताल पर ताजिए और बुर्राकें विसर्जित कीं। किले के अंदर से लोगों ने ताजिए निकाले। चार-चार लोगों की टोलियां कंधों पर ताजिए लेकर लाला के ताल पर पहुंची। यहां पूजन किया, इसके बाद दो से तीन लोग तालाब में कूदे और ताजिए विसर्जित किए। पहली बार जिले में कहीं भी मोहर्रम पर ताजिए विसर्जन के दौरान डीजे की धुन पर जुलूस, रैली तो दूर हाथ ठेलों पर भी ताजिए रखकर नहीं निकाले गए। न ही कत्ल की रात का जुलूस निकाला गया।
सोशल डिस्टेंसिंग से दर्शन होंगे
हर साल की तरह इस बार भी बाबा सोढल का भव्य दरबार सज चुका है। इस बार अंतर यह है कि दूर-दूर से मेला देखने आने वालों की भीड़ नहीं होगी। श्रद्धालुओं को सोशल डिस्टेंस मेनटेन कर बारी-बारी दर्शन करने होंगे। रविवार को झंडे की रस्म अदा की गई। पहली सितंबर को हवन किया जाएगा। इसमें सीमित संख्या में लोग शामिल होंगे। मंदिर कमेटी, निगम और पुलिस प्रशासन ने प्रबंध मुकम्मल कर लिए हैं। खेत्री बीजने वाले 1678 परिवारों के एक-एक मेंबर को खेत्री अर्पण और माथा टेकने की इजाजत दी गई।
बारिश के साथ धूप भी
बारिश के बाद उज्जैन में रविवार दोपहर इंद्रधनुष के रूप में प्रकृति का सतरंगी दर्शन हुआ। बादलों के बीच निकली हल्की धूप ने इंद्रधनुष की खुबसूरती आकाश में बिखेरी। लंबे समय बाद दिखाई दिए इंद्रधनुष को लोगों ने अपने मोबाइल और कैमरों में कैद कर लिया।
लगातार बारिश से बांध ओवरफ्लो
राजस्थान के बांसवाड़ा सहित निकतटवर्ती जिलों में हो रही बारिश के कारण क्षेत्र के बांध ओवरफ्लो हैं। रविवार को माही बांध के 16 गेट खोलने पड़े। साथ ही बारां के 3 बांध व रावतभाटा के गांधीनगर व राणा प्रताप बांध के गेट भी खोलने पड़े। डूंगरपुर में 14 इंच बारिश हुई है। मौसम विभाग ने 24 घंटे भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है। फोटो रावतभाटा के गांधीनगर बांध की है।
from Dainik Bhaskar /local/delhi-ncr/news/on-the-day-construction-was-to-be-completed-in-seoni-of-madhya-pradesh-the-bridge-washed-away-on-the-same-day-the-court-of-sodhal-baba-in-jalandhar-was-decorated-launched-tomorrow-127670606.html
कोई भी अच्छा काम शुरू करने से पहले कहते हैं श्रीगणेश करो। मतलब हर कार्य की शुरुआत गणेश की स्थापना से करते हैं। लेकिन क्या सिर्फ उनको याद करना ही काफी है। हम सिर्फ गणेश जी की महिमा ना गाएं, बल्कि खुद ही श्रीगणेश जैसे बन जाएं।
गणेश जी के अगर हम एक-एक अंग को देखें, तो वे हमें सही जीवन जीने का तरीका सिखाते हैं। गणेश जी का मस्तक बड़ा दिखाया जाता है। जो दिव्य और विशाल बुद्धि का प्रतीक है। उनकी आंखें बहुत छोटी दिखाई जाती हैं। मतलब जो दिव्य बुद्धि वाला होगा वो दूरांदेशी होगा। मतलब कर्म करने से पहले उस कर्म के परिणाम के बारे में सोचना।
गणेश जी का छोटा मुंह होना यह बताता है कि हमें कम बोलना है। लेकिन कान बड़े हैं मतलब ज्यादा सुनना और अच्छी बातों को ग्रहण करना है। फिर गणेश जी का एक दांत टूटा हुआ दिखाते हैं। आज हमारे जीवन में दोहरापन है। जहां अहंकार होगा वहां दोहरापन होगा। परमात्मा यही सिखाते हैं कि मैं आत्मा हूं, तुम भी एक आत्मा हो। इससे हमारा विश्व एक परिवार बन जाता है।
जब यह दिव्यता जीवन में आ जाती है तब दोहरापन खत्म हो जाता है। फिर गणेश जी की सूंड दिखाते हैं। उसकी विशेषता है कि वह एक पेड़ भी उखाड़ लेती है तो एक बच्चे को भी प्यार से उठा लेती है। मतलब आत्मा जो दिव्य बन जाएगी, वो बहुत विनम्र होगी, लेकिन बहुत शक्तिशाली भी होगी।
आध्यात्मिकता का मतलब है, जीवन में सम्पूर्ण संतुलन। विनम्र लेकिन बहुत शक्तिशाली। फिर गणेश जी का पेट बड़ा दिखाते हैं। माना जाता है दिव्य आत्मा वह है जो हर बात को अपने पेट में समा ले। जबकि जो सारी बातें सभी से कहते रहते हैं, उनके लिए कहते हैं कि इसके पेट में कोई बात नहीं पचती।
फिर गणेश जी की चार भुजाएं दिखाते हैं। एक भुजा में कुल्हाड़ी है। मतलब परमात्मा से मिली ज्ञान की कुल्हाड़ी, जिससे अपनी बुराईयां, नकारात्मकता को काटना है। दूसरे हाथ में रस्सी है। जो यह बताती है कि सही सोच, सही बोल, सही कर्म, सही खान-पान, सही धन कमाने का तरीका, इन्हें मर्यादाओं की रस्सी से बांध लो।
फिर तीसरे हाथ को आशीर्वाद देते हुए दिखाते हैं। जो यह बताता है कि हमारा हाथ सदैव देने की मुद्रा में होना चाहिए। मतलब कोई भी आत्मा आए, उसका कैसा भी व्यवहार हो हमारे मन में उनके लिए सिर्फ शुभकामना के संकल्प ही आएं।
फिर चौथे हाथ में मोदक है। लेकिन गणेश जी उसको खाते नहीं हैं हाथ में रखते हैं। इसका मतलब है सफलता मिलेगी लेकिन महिमा को स्वीकार नहीं करना है। अहंकार नहीं करना है। सफलता को सिर्फ हाथ में ही रखना है। फिर गणेश जी को बैठा हुआ दिखाते हैं। जिसमें एक पैर मुड़ा हुआ होता है और एक पैर नीचे होता है। जो पांव नीचे होता है उसका भी सिर्फ अंगूठा नीचे छूता है।
मतलब इस दुनिया में रहना है तो पांव नीचे। हमें सबकुछ करना है, सारे रिश्ते निभाने हैं, कारोबार करना है लेकिन सबसे डिटैच भी रहना है। किसी के संस्कार के प्रभाव में आकर मूल्यों को नहीं छोड़ना है।
श्रीगणेश का वाहन चूहा दिखाते हैं। हम देखें तो चूहा सारा दिन कुछ न कुछ कुतरता रहता है। ये हमारी कर्म इंद्रियों का प्रतीक है। सारा दिन कुछ भी देख रहे हैं, सुन रहे हैं, कुछ भी खा रहे हैं, नहीं भी जरूरत है तो पीते जा रहे हैं। दूसरा, चूहा छोटी-सी जगह से अंदर घुस जाता है। उसी तरह हमारे जीवन में बुराईयां, खिंचाव, कमजोरियां, पता ही नहीं चलता है कि कब आ जाती हैं। दर्द तो बहुत बाद में होता है।
आज हम सब जीवन में बड़ी मेहनत कर रहे हैं। खुशी, स्वास्थ्य, रिश्तों और काम के लिए। हमें अपने लिए समय ही नहीं मिलता है मतलब हम अपनी दुनिया को ही नहीं संभाल पा रहे हैं। लेकिन जिसका संबंध परमात्मा के साथ होगा उसकी हर सोच शुद्ध, हर शब्द सही होगी। तो गणेश जी हमें जीवन जीने का तरीका सिखाते हैं। जो आत्मा ये सब कुछ कर लेती है उसको विघ्नविनाशक कहते हैं। हम सबको विघ्नविनाशक आत्मा बनना है। सबके दुःख हरके इस सृष्टि पर सुख लाना है।
(मोरुप स्टैनजिन) चीन के साथ जारी तनाव के बीच लद्दाख के आखिरी रहवासी गांव मान-मेराक में अब जिंदगी पहले जैसी हो गई है। सभी प्रकार की पाबंदियां हटा ली गई हैं। संचार व्यवस्था बहाल हो गई है और पर्यटकों के लिए भी अब कोई रोक-टोक नहीं है। 2 महीने पहले यहां दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने थीं।
तनाव के गवाह रहे फिंगर-4 इलाके के पास स्थित पैंगोंग झील अब फिर से बच्चों और स्थानीय लोगों से गुलजार है। यहां आसपास के लोगों से बात करो तो कहते हैं- इंडियन आर्मी ने चीनियों को पीछे खदेड़ दिया है। अब डरने जैसी कोई बात नहीं है।
'सर्दियों में लोग पहले की तरह अपने मवेशी फिंगर फोर तक ले जा सकेंगे'
एरिया काउंसलर (स्थानीय जनप्रतिनिधि) स्टैनजिन कॉनचॉक के मुताबिक, 15-16 जून गलवान घाटी की घटना के 2 महीने बाद तक यहां के लोगों ने सेना की सख्त पहरेदारी में जिंदगी गुजारी है। लेकिन, अब जीवन सामान्य हो रहा है। सेना और स्थानीय लोग मिलकर सड़क और भवनों के निर्माण में युद्धस्तर पर लगे हुए हैं क्योंकि सर्दियां शुरू होते ही काम करने में दिक्कत आएगी।
स्टैनजिन ने बताया, हमने नोटिस किया है कि चीनी पीछे हट रहे हैं। इंडियन आर्मी इलाके में नियमित रूप से पेट्रोलिंग कर रही है। गांव मान-मेरक की सरपंच देचेन डोलकर कहती हैं कि अब यहां सबकुछ नॉर्मल है। मुझे उम्मीद है कि आने वाली सर्दियों में लोग पहले की तरह अपने मवेशी फिंगर फोर तक ले जा सकेंगे।
'यहां सबकुछ पहले जैसा है, लोग अपने काम में व्यस्त हैं'
इलाके की पूर्व काउंसलर और चुशुल निवासी सोनम सेरिंग कहती हैं कि स्थानीय लोगों में यह मजबूत धारणा है कि सर्दी शुरू होने पर चीन फिर अपनी हरकत पर उतर सकता है। ऐसे में दोनों देशों के बीच नई झड़प हो सकती है। हालांकि, हम इंडियन आर्मी की मौजूदगी से सुरक्षित महसूस भी कर रहे हैं।
पैंगोंग झील के पास रहने वाले ताशी मोतुप बताते हैं कि जब चीनी फिंगर फोर पर दाखिल हुए, तो हम सब बुरी तरह से घबरा गए थे। गलवान की घटना के बाद पूरे इलाके में दहशत और बेचैनी थी। लेकिन, अब यहां सबकुछ पहले जैसा है। हम लोग अपने काम में व्यस्त हैं।
गलवान के बाद 245 करोड़ का बजट जारी
गलवान की घटना के बाद इस गांव के आसपास तेजी से सड़कों और भवनों का निर्माण हो रहा है। लद्दाख के लेफ्टिनेंट गवर्नर आर के माथुर ने 129 करोड़ का चांगथांग पैकेज जारी किया है। स्पेशल डेवलपमेंट के लिए अतिरिक्त 91.97 करोड़ का फंड निकाला गया है। बॉर्डर एरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम के लिए 23 करोड़ रुपए जारी किए गए। शुक्रवार को कुल मिलाकर इस क्षेत्र के लिए 245 करोड़ का बजट जारी किया गया है।
(मुदस्सिर कुल्लू) कश्मीर में सुरक्षाबलों में खुदकुशी और अपने ही साथी की हत्या कर देने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इस साल के शुरुआती 8 महीने में कश्मीर में 18 जवानों ने आत्महत्या की है। जबकि 6 जवान अपने ही साथी के उन्मादी हमले में मारे गए हैं। सेना, पैरामिलिट्री फोर्स के सूत्रों ने यह जानकारी दी है।
उन्होंने बताया कि पिछले पूरे साल में कश्मीर में 19 जवानों ने आत्महत्या की थी। जबकि इस बार आत्महत्या के आंकड़े 8 महीने में ही करीब बराबरी पर आ गए। इन मामलों का कारण यह है कि सुरक्षाकर्मियों को जरूरत से ज्यादा दैनिक ड्यूटी करनी पड़ रही है। वे परिवार से लंबे समय तक दूर रहने को मजबूर हैं। ऐसे में वे तनाव और डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं।
वे जवान ज्यादा परेशान हैं जो सीधे तौर पर आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए तैनात हैं। कई बार उनका धैर्य टूट जाता है।
कोरोना का डरः मई में एक ही दिन में सीआरपीएफ के एसआई और एएसआई ने खुदकुशी कर ली
इस साल आत्महत्याओं का एक बड़ा कारण कोरोना संकट भी बताया जा रहा है। खासकर सीआरपीएफ के दो मामलों में यह बात खुलकर सामने आई है। सूत्रों के मुताबिक, 12 मई को अनंतनाग जिले के अक्रुर्ण मट्टन क्षेत्र में सीआरपीएफ के एक सब इंस्पेक्टर ने अपनी सर्विस राइफल से गोली मारकर खुदकशी कर ली थी।
सब इंस्पेक्टर ने सुसाइड नोट में लिखा था, ‘मैं डरा हुआ हूं। मैं कोरोना पॉजिटिव हो सकता हूं। बेहतर है मर जाऊं।’ उसी दिन श्रीनगर के करण नगर इलाके में सीआरपीएफ के एक असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर ने भी गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। यह मामला भी कोरोना के डर से जुड़ा बताया जा रहा है। ऐसे अन्य मामले भी होने की आशंका है।
उपाय: जवानों के लिए काउंसिलिंग सेशन, मानसिक व्यायाम को बढ़ावा
श्रीनगर में सीआरपीएफ के जनसंपर्क अधिकारी पंकज सिंह ने बताया कि जवानों को तनाव मुक्त करने के लिए लगातार काउंसलिंग सेशन चलाए जा रहे हैं। इसके अलावा सुबह के व्यायाम में उन गतिविधियों पर जोर दिया जा रहा है, जिनसे मानसिक स्वास्थ्य को फायदा हो। दूसरी ओर एक अधिकारी ने कहा कि शीर्ष अधिकारी ऐसी व्यवस्था करें कि उनके साथी लंबे समय तक परिवार से दूर रहने को मजबूर न हों। वे परिवार के साथ पर्याप्त समय बिता सकें।
दावा: विशेषज्ञ बोले- पारिवारिक समस्याएं आत्महत्या का बड़ा कारण
कश्मीर के मनोचिकित्सक डॉ. यासिर हसन राथर का कहना है कि हर महीने उनके पास कई जवान मानसिक समस्याओं के इलाज के लिए आते हैं। वे बताते हैं कि कैसे वे कड़ी कार्य संस्कृति से परेशान हैं। उन्हें कई बार जरूरी काम के लिए भी वक्त नहीं मिल पाता।
मानसिक स्वास्थ्य सलाहकार वसीम राशिद का कहना है कि जवान लंबे समय तक पारिवारिक समस्याओं को हल नहीं कर पाने के कारण तनाव में रहते हैं। ऐसे में वे कभी-कभी आत्महत्या का रास्ता अपना लेते हैं।
(केपी सेतुनाथ). केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर का संचालन करने वाला त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड तंगहाली दूर करने के लिए अपने सोने को नगदी में बदलने जा रहा है। वहीं, तिरुमाला देवस्थानम बोर्ड जम्मू में भव्य वेंकटेश्वर मंदिर बनाने जा रहा है।
त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड भारतीय रिजर्व बैंक की स्वर्ण बांड योजना में शामिल होगा ताकि बोर्ड के देशभर मेें 1,250 मंदिरों का रख-रखाव और उसका संचालन सही तरीके से हो सके। योजना के तहत बोर्ड को जमा किए गए सोने के एवज में 2.5% वार्षिक ब्याज मिलेगा।
फिलहाल बोर्ड सोने की मात्रा का आकलन कर रहा है
त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड के अध्यक्ष एन वासु ने बताया कि इसके लिए केरल हाईकोर्ट से मंजूरी मांगी गई है। फिलहाल बोर्ड सोने की मात्रा का आकलन कर रहा है। हमें उम्मीद है कि एक महीने में यह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी और योजना को अंतिम रूप दे दिया जाएगा। कोरोना महामारी के चलते मंदिर बंद होने के कारण बोर्ड को करीब 300 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है।
अब यहां श्रद्धालुओं का सीमित संख्या में जुटना शुरू हो गया है
मंदिरों के पास पूजा और अनुष्ठानों के लिए प्राचीन और विरासती जेवर हैं, उन्हें इसमें शामिल नहीं किया जाएगा। हालांकि, बोर्ड के सभी मंदिरों को पांच माह बाद श्रद्धालुओं के लिए 17 अगस्त को खोल दिया गया है। अब यहां श्रद्धालुओं का सीमित संख्या में जुटना शुरू हो गया है।
फिलहाल 3,500 कर्मचारियों को वेतन देने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है
वासु ने कहा कि बोर्ड के पास मौजूद कुल सोने की मात्रा बता पाना अभी संभव नहीं है, क्योंकि आकलन प्रक्रिया जारी है। संभावना है कि कम से कम 1,000 किग्रा सोना तो होगा ही। बोर्ड 1,250 मंदिरों का संचालन करता है और फिलहाल 3,500 कर्मचारियों को वेतन देने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है।
सिर्फ 100 मंदिर ही ऐसे हैं, जिनसे अच्छी आवक होती है जबकि शेष मंदिरों का संचालन इन्हीं 100 मंदिरों को मिले दान पर निर्भर होता है। बोर्ड को सबरीमाला मंदिर से ही सबसे ज्यादा चढ़ावा मिलता है। साल 2019-20 में मंदिर ने तीर्थयात्रा सीजन में 263.57 करोड़ रुपए कमाए थे, जबकि 2018-19 में 179.23 करोड़ रुपए की कमाई हुई थी।
100 एकड़ में बनेगा तिरुपति बालाजी मंदिर, अस्पताल और वैदिक स्कूल भी
इधर, तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम बोर्ड जम्मू-कटरा हाईवे पर भव्य वेंकटेश्वर मंदिर बनाने जा रहा है। इसके लिए जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने हाईवे पर करीब 100 एकड़ जमीन देने पर सहमति जता दी है। बोर्ड के चेयरमैन वायवी सुब्बा रेड्डी ने बताया कि इस मंदिर के बनने से माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए हर वर्ष आने वाले लाखों श्रद्धालु वेंकटेश्वर भगवान के भी दर्शन कर सकेंगे। बोर्ड जम्मू में मंदिर के अलावा अस्पताल, वैदिक पाठशाला और शादी गृह का भी निर्माण करेगा।
हवाई सफर करने वाले यात्री देशभर के एयरपोर्ट्स और विमानों में 4600 से ज्यादा करोड़ों रुपए का सामान छोड़कर भूल गए और लेने नहीं पहुंचे। अब तक एयरपोर्ट पर मिलने वाले सामानों में दूल्हे के जूते, वाइन की बोतल, प्रेशर कुकर, आर्मी यूनिफॉर्म और हथकड़ी सबसे यूनिक हैं। यह सामान एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) के खोया-पाया विभाग में पड़ा है।
एएआई ने रिपोर्ट जारी कर इस बात की जानकारी दी है। रिपोर्ट के मुताबिक, देश के विभिन्न एयरपोर्ट्स पर 4689 सामान मिले हैं। यात्री एक जनवरी से अब तक यह सामान भूले हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि करीब 5 माह से देश में फ्लाइट्स का संचालन नहीं हुआ। इस कारण ज्यादातर सामान विदेशों से भारतीय लोगों को लाने वाली फ्लाइट्स में मिला। कोलकाता एयरपोर्ट के स्टाफ को लेदर जैकेट मिले।
गुवाहाटी के एयरपोर्ट पर आर्मी यूनिफॉर्म और सर्जिकल गाउन मिली
भुवनेश्वर में स्टाफ को दूल्हे के जूते मिले। चेन्नई एयरपोर्ट पर गिटार, सिगरेट, लेजर लाइट और हथकड़ी मिली। गुवाहाटी के एयरपोर्ट पर आर्मी यूनिफॉर्म और सर्जिकल गाउन मिली। सबसे ज्यादा पाए जाने वाले सामानों में मोबाइल, पावर बैंक, लैपटॉप, इयरफोन, कलाई घड़ी, ट्रिमर, पर्स, अंगूठी, पायल, बैडमिंटन, स्लीपिंग बैग और कार की चाबी जैसी चीजें शामिल हैं।
गाइडलाइन के मुताबिक 90 दिन में सामान की नीलामी होती है
एएआई की रिपोर्ट के मुताबिक, खराब हो जाने वाले सामानों के लिए 48 घंटे तक इंतजार किया जाता है। फिर उसका निस्तारण कर दिया जाता है। लेकिन बाकी सामानों के लिए 90 दिन तक इंतजार किया जाता है। यदि निश्चित समय में सामान का मालिक कोई क्लेम नहीं करता है तो उसकी नीलामी कर दी जाती है।
हालांकि, खोए हुए सामान पर दावा करने के लिए बोर्डिंग पास की कॉपी या यात्रा का सबूत जरूरी है। साथ ही जिस सामान पर दावा किया जा रहा है, उसकी जानकारी देनी होती है।
धर्मनगरी में बन रहे इस्कॉन के भव्य कृष्ण-अर्जुन मंदिर में घोड़े अब चीन से नहीं आएंगे। चीन की बजाए अब इंडोनेशिया में मार्बल के घोड़े तैयार कराए जाएंगे। यही घोड़े रथ रूपी कृष्ण-अर्जुन मंदिर में लगेंगे। पहले चीन में चार घोड़ों को तैयार कराने की योजना थी। इसे लेकर फैसला भी हो चुका था, लेकिन अब देश में चीन विरोधी लहर चल रही है। इस्काॅन ने भी चीन के विरोधस्वरूप वहां घोड़े तैयार करने की योजना रद्द कर दी है। इस्कान कुरुक्षेत्र के अध्यक्ष साक्षी गोपालदास महाराज के मुताबिक काफी सोच-विचार के बाद यह निर्णय लिया है। मंदिर 2022 के अंत तक तैयार होगा। अभी इसका 60 प्रतिशत निर्माण हो चुका है।
ग्लोरी ऑफ कुरुक्षेत्र, 165 फुट ऊंचा मंदिर
पिहोवा-कुरुक्षेत्र मार्ग पर ज्योतिसर के पास इस्काॅन ग्लोरी ऑफ कुरुक्षेत्र इस्काॅन वैदिक कल्चर प्रोजेक्ट के तहत भव्य मंदिर का निर्माण कर रहा है। पहले यह मंदिर गीता उपदेश स्थली ज्योतिसर में ही बनना था, लेकिन जमीन विवाद के चलते बाद में सरकार ने पिहोवा रोड पर ज्योतिसर से कुछ दूरी पर हिरमी की जगह में से 6 एकड़ जमीन मुहैया कराई। 6 एकड़ में मंदिर परिसर होगा। इसमें से 23,000 स्क्वायर फीट में मुख्य मंदिर का ढांचा होगा। करीब 165 फुट ऊंचा मंदिर बनेगा। इसपर करीब 200 करोड़ रुपए खर्च आएगा।
यहीं है विश्व का भव्य कृष्ण-अर्जुन कांस्य रथ
कुरुक्षेत्र में कई भव्य मंदिर बन रहे हैं। इनमें गीता ज्ञान मंदिर 18 मंजिला होगा। तिरुपति बालाजी की तर्ज पर भव्य मंदिर बन चुका है। वहीं 5 एकड़ में भारत माता मंदिर भी बनेगा। कुरुक्षेत्र में ही विश्व की सबसे भव्य श्रीकृष्ण-अर्जुन कांस्य रथ भी है। रथ का निर्माण प्रसिद्ध मूर्तिकार रामसुतार ने किया था। इस पर ढाई करोड़ रुपए लागत आई थी। यह रथ बेस सहित करीब 20 फीट ऊंचा है।
41 फीट लंबे होंगे घोड़े
इस्काॅन यूथ फोरम कुरुक्षेत्र के डायरेक्टर गोविंद कृष्ण दास के मुताबिक इंडोनेशिया से आकर्षक चार घोड़े तैयार होंगे जो रथ रूपी मंदिर में फ्रंट की तरफ लगने हैं। एक घोड़े की लंबाई 41 फीट होगी और ऊंचाई करीब 34 फीट होगी। एक घोड़े की अनुमानित लागत करीब 80 से 90 लाख रुपए है। मंदिर व गेस्ट हाउस आदि पर अनुमानित 200 करोड़ रुपए लागत आएगी। अगले साल ये घोड़े तैयार हो जाएंगे।
(पनजुबम चिंगखेइंगबा) मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग से 65 किमी दूर ईस्ट खासी हिल की पहाड़ियों के बीच छोटा-सा गांव मासिनराम बसा है। यहां सालाना 11,872 मिमी बारिश होती है, जो दुनिया में किसी एक जगह पर होने वाली सर्वाधिक बारिश है।
प्रकृति के बीच उसी के संसाधनों के साथ कैसे जीवन जिया जाता है, मासिनराम के लोग इसकी एक मिसाल हैं। गांव के मुखिया लसबोर्न शांगलिंग बताते हैं कि लगभग हर मौसम में यह इलाका बादलों से घिरा रहता है। मई से अक्टूबर के बीच ऐसे कई मौके आते हैं जब लगातार 9 दिन, 9 रात तक बारिश होती है।
महीनों सूर्य के दर्शन नहीं होते
महीने गुजर जाते हैं जब सूर्य देवता के दर्शन नहीं होते। स्कूल टीचर एनआर रापसान्ग बताते हैं कि मई से अक्टूबर तक हमें स्कूल बंद करना पड़ता है। छात्र अगर आते भी हैं, पूरी तरह भीग चुके होते हैं। बावजूद इसके हम कोर्स हर साल समय पर ही खत्म करते हैं।
यहां सबसे बड़ी चुनौती है घर में बारिश और उससे होने वाली नमी रोकना। इसके लिए खिड़की, दरवाजे और सभी झरोखे पूरी तरह से बंद करने पड़ते हैं। एक छोटी सी लापरवाही पूरे घर और उसमें रखे सामान को भिगो देती है। दिन में तीन से चार बार कपड़े हीटर की मदद से सुखाने पड़ते हैं।
छतों पर मोटी घास की परत बिछाते थे
गांव के महासचिव दोहलिंग बताते हैं कि कुछ साल पहले तक लोग मूसलाधार बारिश की आवाज से बचने के लिए छतों पर मोटी घास की परत बिछाते थे। लेकिन अब ये बातें पुरानी हो गई हैं। इनकी जगह नई तकनीक ने ले ली है। सरपंच लसबोर्न बताते हैं कि यहां 1000 परिवार हैं, जिनमें ज्यादातर खासी जनजाति के हैं।
कोरोना की वजह से लॉकडाउन लगा, तो गांव के लोगों को घर में रहने में बिल्कुल भी झिझक नहीं हुई। मई से अक्टूबर तक पुरखों के समय से लॉकडाउन की प्रैक्टिस चली आ रही है। इस दौरान लोग तभी घरों से निकलते हैं, जब बहुत जरूरी काम होता है।
इस नियम का कड़ाई से पालन होता है। सभी लोग घरों में ही रहकर कैरम, कार्ड जैसे गेम खेलकर अपना समय बिताते हैं। घर के बुजुर्ग बच्चों को रीति-रिवाज और किस्से-कहानियां सुनाते हैं। तमाम चुनौतियों के बावजूद यह समय बहुत मीठी यादें लेकर भी आता है।
बांस की तिकोनी टोपी पहनावा बन गया है
गांव की खास पहचान बारिश से बचने के लिए बांस से बनी एक विशेष तरह की टोपी है। स्थानीय भाषा में इसे क्नूप कहते हैं। लोग तेज बारिश में भी इसकी मदद से तमाम काम आराम से करते हैं।
दुनिया की सबसे लंबी गुफा भी यहीं मिली
2016 में गांव में दुनिया की सबसे बड़ी बलुआ पत्थर की गुफा भी खोजी गई। इसे क्रेमपुरी कहा जाता है। यह 24, 583 मीटर लंबी है। दूसरे पायदान पर वेनेजुएला की गुफा है।
(पनजुबम चिंगखेइंगबा) मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग से 65 किमी दूर ईस्ट खासी हिल की पहाड़ियों के बीच छोटा-सा गांव मासिनराम बसा है। यहां सालाना 11,872 मिमी बारिश होती है, जो दुनिया में किसी एक जगह पर होने वाली सर्वाधिक बारिश है।
प्रकृति के बीच उसी के संसाधनों के साथ कैसे जीवन जिया जाता है, मासिनराम के लोग इसकी एक मिसाल हैं। गांव के मुखिया लसबोर्न शांगलिंग बताते हैं कि लगभग हर मौसम में यह इलाका बादलों से घिरा रहता है। मई से अक्टूबर के बीच ऐसे कई मौके आते हैं जब लगातार 9 दिन, 9 रात तक बारिश होती है।
महीनों सूर्य के दर्शन नहीं होते
महीने गुजर जाते हैं जब सूर्य देवता के दर्शन नहीं होते। स्कूल टीचर एनआर रापसान्ग बताते हैं कि मई से अक्टूबर तक हमें स्कूल बंद करना पड़ता है। छात्र अगर आते भी हैं, पूरी तरह भीग चुके होते हैं। बावजूद इसके हम कोर्स हर साल समय पर ही खत्म करते हैं।
यहां सबसे बड़ी चुनौती है घर में बारिश और उससे होने वाली नमी रोकना। इसके लिए खिड़की, दरवाजे और सभी झरोखे पूरी तरह से बंद करने पड़ते हैं। एक छोटी सी लापरवाही पूरे घर और उसमें रखे सामान को भिगो देती है। दिन में तीन से चार बार कपड़े हीटर की मदद से सुखाने पड़ते हैं।
छतों पर मोटी घास की परत बिछाते थे
गांव के महासचिव दोहलिंग बताते हैं कि कुछ साल पहले तक लोग मूसलाधार बारिश की आवाज से बचने के लिए छतों पर मोटी घास की परत बिछाते थे। लेकिन अब ये बातें पुरानी हो गई हैं। इनकी जगह नई तकनीक ने ले ली है। सरपंच लसबोर्न बताते हैं कि यहां 1000 परिवार हैं, जिनमें ज्यादातर खासी जनजाति के हैं।
कोरोना की वजह से लॉकडाउन लगा, तो गांव के लोगों को घर में रहने में बिल्कुल भी झिझक नहीं हुई। मई से अक्टूबर तक पुरखों के समय से लॉकडाउन की प्रैक्टिस चली आ रही है। इस दौरान लोग तभी घरों से निकलते हैं, जब बहुत जरूरी काम होता है।
इस नियम का कड़ाई से पालन होता है। सभी लोग घरों में ही रहकर कैरम, कार्ड जैसे गेम खेलकर अपना समय बिताते हैं। घर के बुजुर्ग बच्चों को रीति-रिवाज और किस्से-कहानियां सुनाते हैं। तमाम चुनौतियों के बावजूद यह समय बहुत मीठी यादें लेकर भी आता है।
बांस की तिकोनी टोपी पहनावा बन गया है
गांव की खास पहचान बारिश से बचने के लिए बांस से बनी एक विशेष तरह की टोपी है। स्थानीय भाषा में इसे क्नूप कहते हैं। लोग तेज बारिश में भी इसकी मदद से तमाम काम आराम से करते हैं।
दुनिया की सबसे लंबी गुफा भी यहीं मिली
2016 में गांव में दुनिया की सबसे बड़ी बलुआ पत्थर की गुफा भी खोजी गई। इसे क्रेमपुरी कहा जाता है। यह 24, 583 मीटर लंबी है। दूसरे पायदान पर वेनेजुएला की गुफा है।
from Dainik Bhaskar /national/news/there-is-a-lockdown-for-6-months-so-that-the-houses-do-not-get-moisture-roofs-are-soundproofed-to-avoid-the-loud-sound-of-rain-127670472.html
धर्मनगरी में बन रहे इस्कॉन के भव्य कृष्ण-अर्जुन मंदिर में घोड़े अब चीन से नहीं आएंगे। चीन की बजाए अब इंडोनेशिया में मार्बल के घोड़े तैयार कराए जाएंगे। यही घोड़े रथ रूपी कृष्ण-अर्जुन मंदिर में लगेंगे। पहले चीन में चार घोड़ों को तैयार कराने की योजना थी। इसे लेकर फैसला भी हो चुका था, लेकिन अब देश में चीन विरोधी लहर चल रही है। इस्काॅन ने भी चीन के विरोधस्वरूप वहां घोड़े तैयार करने की योजना रद्द कर दी है। इस्कान कुरुक्षेत्र के अध्यक्ष साक्षी गोपालदास महाराज के मुताबिक काफी सोच-विचार के बाद यह निर्णय लिया है। मंदिर 2022 के अंत तक तैयार होगा। अभी इसका 60 प्रतिशत निर्माण हो चुका है।
ग्लोरी ऑफ कुरुक्षेत्र, 165 फुट ऊंचा मंदिर
पिहोवा-कुरुक्षेत्र मार्ग पर ज्योतिसर के पास इस्काॅन ग्लोरी ऑफ कुरुक्षेत्र इस्काॅन वैदिक कल्चर प्रोजेक्ट के तहत भव्य मंदिर का निर्माण कर रहा है। पहले यह मंदिर गीता उपदेश स्थली ज्योतिसर में ही बनना था, लेकिन जमीन विवाद के चलते बाद में सरकार ने पिहोवा रोड पर ज्योतिसर से कुछ दूरी पर हिरमी की जगह में से 6 एकड़ जमीन मुहैया कराई। 6 एकड़ में मंदिर परिसर होगा। इसमें से 23,000 स्क्वायर फीट में मुख्य मंदिर का ढांचा होगा। करीब 165 फुट ऊंचा मंदिर बनेगा। इसपर करीब 200 करोड़ रुपए खर्च आएगा।
यहीं है विश्व का भव्य कृष्ण-अर्जुन कांस्य रथ
कुरुक्षेत्र में कई भव्य मंदिर बन रहे हैं। इनमें गीता ज्ञान मंदिर 18 मंजिला होगा। तिरुपति बालाजी की तर्ज पर भव्य मंदिर बन चुका है। वहीं 5 एकड़ में भारत माता मंदिर भी बनेगा। कुरुक्षेत्र में ही विश्व की सबसे भव्य श्रीकृष्ण-अर्जुन कांस्य रथ भी है। रथ का निर्माण प्रसिद्ध मूर्तिकार रामसुतार ने किया था। इस पर ढाई करोड़ रुपए लागत आई थी। यह रथ बेस सहित करीब 20 फीट ऊंचा है।
41 फीट लंबे होंगे घोड़े
इस्काॅन यूथ फोरम कुरुक्षेत्र के डायरेक्टर गोविंद कृष्ण दास के मुताबिक इंडोनेशिया से आकर्षक चार घोड़े तैयार होंगे जो रथ रूपी मंदिर में फ्रंट की तरफ लगने हैं। एक घोड़े की लंबाई 41 फीट होगी और ऊंचाई करीब 34 फीट होगी। एक घोड़े की अनुमानित लागत करीब 80 से 90 लाख रुपए है। मंदिर व गेस्ट हाउस आदि पर अनुमानित 200 करोड़ रुपए लागत आएगी। अगले साल ये घोड़े तैयार हो जाएंगे।
from Dainik Bhaskar /national/news/iskcons-grand-krishna-arjun-temple-in-the-form-of-a-chariot-with-200-crores-rupees-being-built-in-kurukshetra-127670470.html
हवाई सफर करने वाले यात्री देशभर के एयरपोर्ट्स और विमानों में 4600 से ज्यादा करोड़ों रुपए का सामान छोड़कर भूल गए और लेने नहीं पहुंचे। अब तक एयरपोर्ट पर मिलने वाले सामानों में दूल्हे के जूते, वाइन की बोतल, प्रेशर कुकर, आर्मी यूनिफॉर्म और हथकड़ी सबसे यूनिक हैं। यह सामान एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) के खोया-पाया विभाग में पड़ा है।
एएआई ने रिपोर्ट जारी कर इस बात की जानकारी दी है। रिपोर्ट के मुताबिक, देश के विभिन्न एयरपोर्ट्स पर 4689 सामान मिले हैं। यात्री एक जनवरी से अब तक यह सामान भूले हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि करीब 5 माह से देश में फ्लाइट्स का संचालन नहीं हुआ। इस कारण ज्यादातर सामान विदेशों से भारतीय लोगों को लाने वाली फ्लाइट्स में मिला। कोलकाता एयरपोर्ट के स्टाफ को लेदर जैकेट मिले।
गुवाहाटी के एयरपोर्ट पर आर्मी यूनिफॉर्म और सर्जिकल गाउन मिली
भुवनेश्वर में स्टाफ को दूल्हे के जूते मिले। चेन्नई एयरपोर्ट पर गिटार, सिगरेट, लेजर लाइट और हथकड़ी मिली। गुवाहाटी के एयरपोर्ट पर आर्मी यूनिफॉर्म और सर्जिकल गाउन मिली। सबसे ज्यादा पाए जाने वाले सामानों में मोबाइल, पावर बैंक, लैपटॉप, इयरफोन, कलाई घड़ी, ट्रिमर, पर्स, अंगूठी, पायल, बैडमिंटन, स्लीपिंग बैग और कार की चाबी जैसी चीजें शामिल हैं।
गाइडलाइन के मुताबिक 90 दिन में सामान की नीलामी होती है
एएआई की रिपोर्ट के मुताबिक, खराब हो जाने वाले सामानों के लिए 48 घंटे तक इंतजार किया जाता है। फिर उसका निस्तारण कर दिया जाता है। लेकिन बाकी सामानों के लिए 90 दिन तक इंतजार किया जाता है। यदि निश्चित समय में सामान का मालिक कोई क्लेम नहीं करता है तो उसकी नीलामी कर दी जाती है।
हालांकि, खोए हुए सामान पर दावा करने के लिए बोर्डिंग पास की कॉपी या यात्रा का सबूत जरूरी है। साथ ही जिस सामान पर दावा किया जा रहा है, उसकी जानकारी देनी होती है।
(केपी सेतुनाथ). केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर का संचालन करने वाला त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड तंगहाली दूर करने के लिए अपने सोने को नगदी में बदलने जा रहा है। वहीं, तिरुमाला देवस्थानम बोर्ड जम्मू में भव्य वेंकटेश्वर मंदिर बनाने जा रहा है।
त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड भारतीय रिजर्व बैंक की स्वर्ण बांड योजना में शामिल होगा ताकि बोर्ड के देशभर मेें 1,250 मंदिरों का रख-रखाव और उसका संचालन सही तरीके से हो सके। योजना के तहत बोर्ड को जमा किए गए सोने के एवज में 2.5% वार्षिक ब्याज मिलेगा।
फिलहाल बोर्ड सोने की मात्रा का आकलन कर रहा है
त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड के अध्यक्ष एन वासु ने बताया कि इसके लिए केरल हाईकोर्ट से मंजूरी मांगी गई है। फिलहाल बोर्ड सोने की मात्रा का आकलन कर रहा है। हमें उम्मीद है कि एक महीने में यह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी और योजना को अंतिम रूप दे दिया जाएगा। कोरोना महामारी के चलते मंदिर बंद होने के कारण बोर्ड को करीब 300 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है।
अब यहां श्रद्धालुओं का सीमित संख्या में जुटना शुरू हो गया है
मंदिरों के पास पूजा और अनुष्ठानों के लिए प्राचीन और विरासती जेवर हैं, उन्हें इसमें शामिल नहीं किया जाएगा। हालांकि, बोर्ड के सभी मंदिरों को पांच माह बाद श्रद्धालुओं के लिए 17 अगस्त को खोल दिया गया है। अब यहां श्रद्धालुओं का सीमित संख्या में जुटना शुरू हो गया है।
फिलहाल 3,500 कर्मचारियों को वेतन देने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है
वासु ने कहा कि बोर्ड के पास मौजूद कुल सोने की मात्रा बता पाना अभी संभव नहीं है, क्योंकि आकलन प्रक्रिया जारी है। संभावना है कि कम से कम 1,000 किग्रा सोना तो होगा ही। बोर्ड 1,250 मंदिरों का संचालन करता है और फिलहाल 3,500 कर्मचारियों को वेतन देने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है।
सिर्फ 100 मंदिर ही ऐसे हैं, जिनसे अच्छी आवक होती है जबकि शेष मंदिरों का संचालन इन्हीं 100 मंदिरों को मिले दान पर निर्भर होता है। बोर्ड को सबरीमाला मंदिर से ही सबसे ज्यादा चढ़ावा मिलता है। साल 2019-20 में मंदिर ने तीर्थयात्रा सीजन में 263.57 करोड़ रुपए कमाए थे, जबकि 2018-19 में 179.23 करोड़ रुपए की कमाई हुई थी।
100 एकड़ में बनेगा तिरुपति बालाजी मंदिर, अस्पताल और वैदिक स्कूल भी
इधर, तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम बोर्ड जम्मू-कटरा हाईवे पर भव्य वेंकटेश्वर मंदिर बनाने जा रहा है। इसके लिए जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने हाईवे पर करीब 100 एकड़ जमीन देने पर सहमति जता दी है। बोर्ड के चेयरमैन वायवी सुब्बा रेड्डी ने बताया कि इस मंदिर के बनने से माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए हर वर्ष आने वाले लाखों श्रद्धालु वेंकटेश्वर भगवान के भी दर्शन कर सकेंगे। बोर्ड जम्मू में मंदिर के अलावा अस्पताल, वैदिक पाठशाला और शादी गृह का भी निर्माण करेगा।
from Dainik Bhaskar /national/news/300-crore-loss-to-travancore-devaswom-board-which-operates-1250-temples-now-the-board-will-convert-its-gold-into-cash-to-clear-the-tussle-tirumala-board-will-build-grand-venkateswara-temple-in-jammu-127670466.html
(मुदस्सिर कुल्लू) कश्मीर में सुरक्षाबलों में खुदकुशी और अपने ही साथी की हत्या कर देने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इस साल के शुरुआती 8 महीने में कश्मीर में 18 जवानों ने आत्महत्या की है। जबकि 6 जवान अपने ही साथी के उन्मादी हमले में मारे गए हैं। सेना, पैरामिलिट्री फोर्स के सूत्रों ने यह जानकारी दी है।
उन्होंने बताया कि पिछले पूरे साल में कश्मीर में 19 जवानों ने आत्महत्या की थी। जबकि इस बार आत्महत्या के आंकड़े 8 महीने में ही करीब बराबरी पर आ गए। इन मामलों का कारण यह है कि सुरक्षाकर्मियों को जरूरत से ज्यादा दैनिक ड्यूटी करनी पड़ रही है। वे परिवार से लंबे समय तक दूर रहने को मजबूर हैं। ऐसे में वे तनाव और डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं।
वे जवान ज्यादा परेशान हैं जो सीधे तौर पर आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए तैनात हैं। कई बार उनका धैर्य टूट जाता है।
कोरोना का डरः मई में एक ही दिन में सीआरपीएफ के एसआई और एएसआई ने खुदकुशी कर ली
इस साल आत्महत्याओं का एक बड़ा कारण कोरोना संकट भी बताया जा रहा है। खासकर सीआरपीएफ के दो मामलों में यह बात खुलकर सामने आई है। सूत्रों के मुताबिक, 12 मई को अनंतनाग जिले के अक्रुर्ण मट्टन क्षेत्र में सीआरपीएफ के एक सब इंस्पेक्टर ने अपनी सर्विस राइफल से गोली मारकर खुदकशी कर ली थी।
सब इंस्पेक्टर ने सुसाइड नोट में लिखा था, ‘मैं डरा हुआ हूं। मैं कोरोना पॉजिटिव हो सकता हूं। बेहतर है मर जाऊं।’ उसी दिन श्रीनगर के करण नगर इलाके में सीआरपीएफ के एक असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर ने भी गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। यह मामला भी कोरोना के डर से जुड़ा बताया जा रहा है। ऐसे अन्य मामले भी होने की आशंका है।
उपाय: जवानों के लिए काउंसिलिंग सेशन, मानसिक व्यायाम को बढ़ावा
श्रीनगर में सीआरपीएफ के जनसंपर्क अधिकारी पंकज सिंह ने बताया कि जवानों को तनाव मुक्त करने के लिए लगातार काउंसलिंग सेशन चलाए जा रहे हैं। इसके अलावा सुबह के व्यायाम में उन गतिविधियों पर जोर दिया जा रहा है, जिनसे मानसिक स्वास्थ्य को फायदा हो। दूसरी ओर एक अधिकारी ने कहा कि शीर्ष अधिकारी ऐसी व्यवस्था करें कि उनके साथी लंबे समय तक परिवार से दूर रहने को मजबूर न हों। वे परिवार के साथ पर्याप्त समय बिता सकें।
दावा: विशेषज्ञ बोले- पारिवारिक समस्याएं आत्महत्या का बड़ा कारण
कश्मीर के मनोचिकित्सक डॉ. यासिर हसन राथर का कहना है कि हर महीने उनके पास कई जवान मानसिक समस्याओं के इलाज के लिए आते हैं। वे बताते हैं कि कैसे वे कड़ी कार्य संस्कृति से परेशान हैं। उन्हें कई बार जरूरी काम के लिए भी वक्त नहीं मिल पाता।
मानसिक स्वास्थ्य सलाहकार वसीम राशिद का कहना है कि जवान लंबे समय तक पारिवारिक समस्याओं को हल नहीं कर पाने के कारण तनाव में रहते हैं। ऐसे में वे कभी-कभी आत्महत्या का रास्ता अपना लेते हैं।
from Dainik Bhaskar /national/news/in-18-months-18-jawans-struggling-with-tension-committed-suicide-double-challenge-in-front-of-security-forces-in-the-valley-127670465.html
(मोरुप स्टैनजिन) चीन के साथ जारी तनाव के बीच लद्दाख के आखिरी रहवासी गांव मान-मेराक में अब जिंदगी पहले जैसी हो गई है। सभी प्रकार की पाबंदियां हटा ली गई हैं। संचार व्यवस्था बहाल हो गई है और पर्यटकों के लिए भी अब कोई रोक-टोक नहीं है। 2 महीने पहले यहां दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने थीं।
तनाव के गवाह रहे फिंगर-4 इलाके के पास स्थित पैंगोंग झील अब फिर से बच्चों और स्थानीय लोगों से गुलजार है। यहां आसपास के लोगों से बात करो तो कहते हैं- इंडियन आर्मी ने चीनियों को पीछे खदेड़ दिया है। अब डरने जैसी कोई बात नहीं है।
'सर्दियों में लोग पहले की तरह अपने मवेशी फिंगर फोर तक ले जा सकेंगे'
एरिया काउंसलर (स्थानीय जनप्रतिनिधि) स्टैनजिन कॉनचॉक के मुताबिक, 15-16 जून गलवान घाटी की घटना के 2 महीने बाद तक यहां के लोगों ने सेना की सख्त पहरेदारी में जिंदगी गुजारी है। लेकिन, अब जीवन सामान्य हो रहा है। सेना और स्थानीय लोग मिलकर सड़क और भवनों के निर्माण में युद्धस्तर पर लगे हुए हैं क्योंकि सर्दियां शुरू होते ही काम करने में दिक्कत आएगी।
स्टैनजिन ने बताया, हमने नोटिस किया है कि चीनी पीछे हट रहे हैं। इंडियन आर्मी इलाके में नियमित रूप से पेट्रोलिंग कर रही है। गांव मान-मेरक की सरपंच देचेन डोलकर कहती हैं कि अब यहां सबकुछ नॉर्मल है। मुझे उम्मीद है कि आने वाली सर्दियों में लोग पहले की तरह अपने मवेशी फिंगर फोर तक ले जा सकेंगे।
'यहां सबकुछ पहले जैसा है, लोग अपने काम में व्यस्त हैं'
इलाके की पूर्व काउंसलर और चुशुल निवासी सोनम सेरिंग कहती हैं कि स्थानीय लोगों में यह मजबूत धारणा है कि सर्दी शुरू होने पर चीन फिर अपनी हरकत पर उतर सकता है। ऐसे में दोनों देशों के बीच नई झड़प हो सकती है। हालांकि, हम इंडियन आर्मी की मौजूदगी से सुरक्षित महसूस भी कर रहे हैं।
पैंगोंग झील के पास रहने वाले ताशी मोतुप बताते हैं कि जब चीनी फिंगर फोर पर दाखिल हुए, तो हम सब बुरी तरह से घबरा गए थे। गलवान की घटना के बाद पूरे इलाके में दहशत और बेचैनी थी। लेकिन, अब यहां सबकुछ पहले जैसा है। हम लोग अपने काम में व्यस्त हैं।
गलवान के बाद 245 करोड़ का बजट जारी
गलवान की घटना के बाद इस गांव के आसपास तेजी से सड़कों और भवनों का निर्माण हो रहा है। लद्दाख के लेफ्टिनेंट गवर्नर आर के माथुर ने 129 करोड़ का चांगथांग पैकेज जारी किया है। स्पेशल डेवलपमेंट के लिए अतिरिक्त 91.97 करोड़ का फंड निकाला गया है। बॉर्डर एरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम के लिए 23 करोड़ रुपए जारी किए गए। शुक्रवार को कुल मिलाकर इस क्षेत्र के लिए 245 करोड़ का बजट जारी किया गया है।
from Dainik Bhaskar /national/news/children-wandering-fearlessly-near-pangong-lake-also-opened-to-tourists-this-village-near-finger-4-people-said-now-all-normal-127670464.html
आज ही के दिन 25 साल पहले 1995 में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की एक आत्मघाती हमले में हत्या कर दी गई थी। वह पंजाब-हरियाणा सचिवालय के बाहर अपनी कार में थे। तभी एक खालिस्तानी आतंकी वहां मानवबम बनकर पहुंचा और अपने आप को उड़ा लिया। इस आत्मघाती हमले में बेअंत सिंह समेत 18 लोगों की मौत हो गई थी।
23 साल पहले वेल्स की राजकुमारी की पेरिस में कार दुर्घटना में मौत
1997 में ब्रिटेन की राजकुमारी और राजकुमार चार्ल्स की पूर्व पत्नी डायना की पेरिस में एक कार दुर्घटना में मौत हो गई थी। लेकिन, यह दुर्घटना आज भी संदेह के घेरे में है। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, डायना पेरिस में अपने प्रेमी डोडी अल फाएद के साथ कार में घूम रही थीं। इस बीच कुछ फोटोग्राफरों को कार का पीछा करते देख ड्राइवर ने कार का एक्सलरेटर दबा दिया और फिर कार एक सुरंग में पोल से टकरा गई।
हादसे में डायना, डोडी और ड्राइवर हेनरी पॉल की मौत हो गई, जबकि डोडी का बॉडीगार्ड बच गया। मौत की जांच के लिए गठित समिति ने 2008 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कार ड्राइवर की लापरवाही से एक्सीडेंट हुआ। डायना अपने वक्त की सबसे खूबसूरत महिलाओं में शामिल थीं। वह ग्रेट ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ सेकेंड के बेटे और ब्रिटेन के होने वाले राजा चार्ल्स की पत्नी भी थीं।
64 साल पहले राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित हुआ था
आज ही के दिन 1956 में फजल अली की अध्यक्षता में गठित आयोग के सुझावों को मानते हुए राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित हुआ था। संविधान बनने के बाद 27 नवंबर, 1947 को संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश एस.के. धर की अध्यक्षता में एक चार सदस्यीय आयोग का गठन किया।
आयोग को इस बात की जाँच-पड़ताल करने के लिए कहा गया कि भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन उचित है अथवा नहीं। इस आयोग ने दिसंबर 1948 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी। इस रिपोर्ट में आयोग ने प्रशासनिक आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का समर्थन किया गया था। 22 दिसंबर, 1953 को फजल अली की अध्यक्षता में एक दूसरा आयोग बना। आयोग ने 30 सितंबर, 1955 में केंद्र को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
संसद ने इस आयोग की सिफारिशों को कुछ परिवर्तनों के साथ स्वीकार कर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम के अंतर्गत भारत में चौदह राज्य आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, बंबई, जम्मू-कश्मीर,केरल, मध्यप्रदेश, मद्रास, मैसूर, उड़ीसा (वर्तमान में ओडिशा), पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के अलावा पांच केंद्र शासित प्रदेश थे।
इतिहास के पन्नों में आज के दिन को इन घटनाओं की वजह से भी याद किया जाता है…
1919: अमेरिकन कम्युनिस्ट पार्टी का गठन हुआ।
1920: अमेरिकी शहर डेट्रायट में रेडियो पर पहली बार समाचार प्रसारित किया गया।
1957: मलेशिया ने ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्त कर ली।
1968: भारत में टू-स्टेज राउंडिंग रॉकेट रोहिणी-एमएसवी 1 का सफल प्रक्षेपण किया गया।
1983: भारत के उपग्रह इनसेट-1 बी को अमेरिका के अंतरिक्ष शटल चैलेंजर से प्रसारित किया गया।
1991: उज्बेकिस्तान और किर्गिस्तान ने सोवियत संघ से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की।
1998: उत्तरी कोरिया ने जापान पर बैलिस्टिक मिसाइल दागा।
ग्लैन क्रैमन. कोरोनावायरस के इस चिंता भरे माहौल में हर कोई मन को शांत रखने और खुश रहने की कोशिश कर रहा है। जीवन में पहली बार ऐसे हालात देखने को मिले, जब हम हमारे दोस्तों और यहां तक कि रिश्तेदारों से मिलने से पहले सोच रहे हैं। पब्लिक ट्रांसपोर्ट बंद हैं, कहीं भी आने-जाने पर रोक-टोक जारी है। इतना ही नहीं घर के बाहर निकलने में भी खतरा है।
बुरे हालात की वजह से दिमागी तौर पर परेशान होना स्वभाविक है। ऐसे में एक थैरेपी है, जो आपकी मदद कर सकती है। क्यों न इस तनाव के माहौल में जर्नल लिखना शुरू किया जाए। इससे आप खुद को बेहतर तरह से जान पाएंगे। इससे आपकी लेखनी सुधरेगी और वो कहानी बेहतर ढंग से तैयार होगी जो आप अपने बारे में दूसरों को सुनाना चाहते हैं। यह एक साइकोथैरेपी का काम भी करेगी और सबसे खास बात यह सस्ता भी है।
एक तरह की थैरेपी है जर्नल राइटिंग
रिसर्च बताते हैं कि जर्नल लिखना आपके लिए अच्छा हो सकता है। यह आपको तनाव से और कुछ डिप्रेशन से लड़ने में मदद करता है। आप इसके जरिए मन की चीजों को बाहर निकालते हैं और खुद को लेकर ज्यादा जागरूक होते हैं। एक जर्नल बुरे वक्त में काफी काम आता है।
इस वक्त में लिखने के जरिए आप खुद को संभालने की कोशिश करेंगे। लिखने के बाद इसे दोबारा पढ़ना आपको बताएगा कि क्या गलत हो रहा है और इसे सुधारना कैसे है। इसकी वजह से आप अकेलेपन में भी अकेला महसूस नहीं करेंगे।
यादों को सहेजता है जर्नल
एक जर्नल आपको जीवन के शानदार पलों को सहेजने में मदद करता है। ऐसे कई किस्से आप जर्नल में शामिल कर सकते हैं, जिन्हें सालों बाद पढ़ने पर यादें ताजा हो जाएंगी। सबसे अच्छे जर्नल वो होते हैं, जो ईमानदारी से लिखे गए हैं। शायद इसलिए कई लोग सोशल मीडिया पर खुश चेहरे पोस्ट करने के बजाए जर्नल बनाते हैं।
थैरेपी में यह ईमानदारी सच जानने में मदद करती है और इसका सबसे अच्छा हिस्सा है आगे बढ़ते रहना। यह आपको चुनौतियों के जरिए सोचने में मदद करती है। जब आप लिखते हैं तो आपको एहसास होता है कि आप किसी चीज को लेकर ज्यादा चिंता कर रहे हैं। कभी आपको एहसास होता है कि गलत चीज के बारे में ज्यादा सोच रहे हैं।
लिखना सुधरेगा
अगर आप अपनी लेखनी सुधारना चाहते हैं तो इससे बेहतर दूसरा तरीका नहीं हो सकता। आप कहानी कहने के आर्ट की प्रैक्टिस कर सकते हैं। आप कम, लेकिन असरदार शब्द कहने की प्रैक्टिस कर सकते हैं। नतीजा यह होगा कि आप दूसरों को ज्यादा दिलचस्प कहानी सुना पाएंगे। इसके अलावा आप जो भी लिखते हैं, उसे दोबारा लिखने की अभ्यास कर पाएंगे। जैसा कि आप जॉगिंग के जरिए स्टैमिना को बढ़ाते हैं। केवल 10 मिनट लिखने से भी चीजें बेहतर होंगी।
ऐसे करें शुरुआत
धीमी शुरुआत करें। केवल अपने कामों के बारे में एक या दो लाइनें लिखें। याद रखें कि आपको रोज लिखने की जरूरत नहीं है। हर दिन के बारे में कुछ न कुछ जरूर लिखें। अगर आपके पास उस दिन लिखने का वक्त नहीं है तो जो कुछ हुआ है, उसे लेकर कुछ शब्द याद कर लें, ताकि जब आप लिखने बैठें तो चीजें याद आने लगें। हर रोज के बारे में चैप्टर लिखने की जरूरत नहीं है। आप जानते हैं कि कब ज्यादा लिखना है।
अब सवाल लिखें या टाइप करें?
कुछ जर्नल लिखने वाले हाथ से लिखना पसंद करते हैं, क्योंकि इससे उनकी सोच ज्यादा वास्तविक लगती है। कंप्यूटर पर लिखने के अपने फायदे हैं। आपको डॉक्यूमेंट को काटना नहीं होगा, किसी भी चीज को आराम से सर्च कर पाएंगे। इसके लिए वर्ड या गूगल डॉक्यूमेंट बेहतर ऑप्शन रहेंगे। इन्हें सेव करना और बैकअप लेना न भूलें।
कई जर्नल लिखने वाले ऐसी ऐप्स को पसंद करते हैं जो उन्हें फोटो, वीडियो, ऑडियो रिकॉर्डिंग्स और स्कैच जोड़ने का मौका देती है। आप लिखने के बजाए डिक्टेट भी कर सकते हैं। ध्यान रखें कि फोटो, रिकॉर्डिंग्स आपको लिखने से भटका सकती हैं। इससे आपका जर्नल अजीब लग सकता है। ऐसे में फोकस रहने के लिए केवल शब्दों से शुरुआत करें।
सपने देखें
हर एंट्री में खुद को परेशान करना भी आपकी मदद करेगा। बुरे वक्त में खुद को अच्छा पहचानने के लिए मजबूर करें और जो कहना चाहते हैं कहें। आपको जो पसंद है, सपने देखना और इसे पूरा कैसे करना है, इस बारे में कह देना अच्छा होता है।
भविष्य के लिए लिखें
कई जर्नल लिखने वाले प्राइवेसी चाहते हैं। जबकि कुछ उम्मीद करते हैं कि उनके मरने के बाद भी लंबे समय तक उनका लिखा पढ़ा जाए। शायद उन शोधकर्ताओं के लिए जो 21वीं सदी में जीवन को लेकर स्टडी कर रहे हैं और यह जानना चाहते हैं कि हम क्या महसूस कर रहे हैं।
अगर आप आशावादी हैं, और सोचते है कि दुनिया अगले कुछ सालों में अपने आप खत्म नहीं होगी, तो अपने जर्नल्स को किसी इंस्टीट्यूट को देने के बारे में सोचें। इसमें उपयोग के संबंध में निर्देश भी लिख दें। इसके बाद आपके शब्द आपको जिंदा रखेंगे।
कोरोनावायरस के बीच टेनिस ग्रैंड स्लैम यूएस ओपन आज से अमेरिका के न्यूयॉर्क में खेला जाएगा। टूर्नामेंट बगैर दर्शकों के होगा। यूरोप, दक्षिण अमेरिका और पश्चिम एशिया से खिलाड़ियों को चार्टर्ड प्लेन से न्यूयॉर्क लाया जाएगा। इस बार सबसे ज्यादा 20 ग्रैंड स्लैम विजेता स्विट्जरलैंड के रोजर फेडरर और दूसरे 19 ग्रैंड स्लैम चैम्पियन स्पेन के राफेल नडाल नहीं खेलेंगे। ऐसा 21 साल में पहली बार होगा, जब यह दोनों दिग्गज टूर्नामेंट नहीं खेलेंगे।
उनकी गैरमौजूदगी में सर्बिया के वर्ल्ड नंबर-1 नोवाक जोकोविच के पास 18वां ग्रैंड स्लैम जीतने का मौका है। फेडरर ने 1999 और नडाल ने 2003 में पहली बार यूएस ओपन खेला था। यूएस ओपन खिताब की बात करें, तो फेडरर ने पहला खिताब 2004 और नडाल ने 2010 में जीता था।
महेश भूपति ने 1999 में भारत को पहला खिताब दिलाया था
वहीं, टूर्नामेंट में भारतीय एंगल की बात करें, तो 5 साल से कोई इंडियन चैम्पियन नहीं बन सका है। भारत के लिए पिछली बार 2015 में लिएंडर पेस ने मिक्स्ड डबल्स में खिताब जीता था। भारत के लिए पहली बार महेश भूपति ने 1999 में मिक्स्ड डबल्स में जापान की आई सुगियामा के साथ यूएस ओपन खिताब जीता था।
इसके बाद लिएंडर पेस 2006 में मेन्स डबल्स स्पर्धा में चेक गणराज्य के मार्टिन डैम के साथ खेलते हुए चैम्पियन बने थे। भारत के लिए तीसरी चैम्पियन सानिया मिर्जा थीं। उन्होंने 2014 में मिक्स्ड डबल्स स्पर्धा में ब्राजील के ब्रूनो सोआरेस के साथ फाइनल जीता था। 140 साल के इतिहास में अब तक तीन भारतीय खिलाड़ियों ने कुल 10 खिताब जीते।
भारत की ओर से सुमित नागल दूसरी बार टूर्नामेंट में उतर रहे हैं। उनका पहला मुकाबला 1 सितंबर को मेन्स सिंगल्स में अमेरिका के ब्रेडली क्लान से होगा। युवा भारतीय टेनिस स्टार नागल को इस बार ग्रैंड स्लैम यूएस ओपन में सीधे इंट्री मिली है। वे पहली बार सीधे मेन ड्रॉ में खेलेंगे। पिछली बार वे क्वालिफाई करके पहुंचे थे। तब सुमित पहले ही राउंड में उनके ड्रीम प्लेयर रोजर फेडरर से हारे थे।
वुमन्स और मेन्स सिंगल्स के डिफेंडिंग चैम्पियन नहीं खेलेंगे
कोरोना के कारण मेन्स सिंगल्स के डिफेंडिंग चैम्पियन नडाल और वुमन्स में कनाडा की बियांका एंद्रेस्कू टूर्नामेंट में नहीं खेलेंगे। बियांका ने पिछली बार फाइनल में अमेरिका की सेरेना विलियम्स को हराकर खिताब जीता था। वहीं, नडाल ने रूस के दानिल मेदवेदेव को हराकर चौथी बार खिताब जीता था।
वर्ल्ड रैंकिंग में टॉप-8 की 6 महिला खिलाड़ी भी नहीं खेलेंगी
वहीं, वर्ल्ड रैंकिंग में टॉप-2 महिला खिलाड़ी पहले ही नाम वापस ले चुकी हैं। वर्ल्ड नंबर-1 एश्ले बार्टी, रोमानिया की वर्ल्ड नंबर-2 सिमोना हालेप, नंबर-5 एलिना स्वितोलिना, नंबर-6 बियांका एंद्रेस्कू, नंबर-7 किकि बेर्टेंस और नंबर-8 बेलिंडा बेंसिस।
टूर्नामेंट में इन दिग्गजों पर नजर
नडाल और फेडरर के हटने के बाद जोकोविच को सिर्फ रूस के डेनिल मेदवेदेव, ऑस्ट्रिया के डोमिनिक थिएम और ग्रीस के स्टिफनोस सितसिपास से टक्कर मिल सकती है। वहीं, महिलाओं में वर्ल्ड नंबर-9 सेरेना विलियम्स को नंबर-10 नाओमी ओसाका, नंबर-4 सोफिया केनिन और नंबर-3 कैरोलिना प्लिस्कोवा कड़ी चुनौती देंगी। केनिन ने इस साल ऑस्ट्रेलियन ओपन भी जीता था।
जोकोविच सबसे ज्यादा ग्रैंड स्लैम विजेता के मामले में तीसरे नंबर पर
खिलाड़ी
देश
ग्रैंड स्लैम जीते
कुल
रोजर फेडरर
स्विट्जरलैंड
5 यूएस ओपन, 8 विंबलडन, 6 ऑस्ट्रेलियन और 1 फ्रेंच ओपन
20
राफेल नडाल
स्पेन
4 यूएस ओपन, 12 फ्रेंच ओपन, 1 ऑस्ट्रेलियन और 2 विंबलडन
19
नोवाक जोकोविच
सर्बिया
3 यूएस ओपन, 8 ऑस्ट्रेलियन ओपन, 5 विंबलडन और 1 फ्रेंच ओपन
17
1881 में पहली बार खेला गया था टूर्नामेंट
पहली बार यह टूर्नामेंट 1881 में खेला गया था। तब मेन्स सिंगल्स और डबल्स के मुकाबले खेले गए थे। 1887 में पहली बार महिला सिंगल्स और 1889 डबल्स के मुकाबले शुरू हुए। इसके बाद 1892 में मिक्स्ड डबल्स की शुरुआत हुई। पहले इसे यूएस टेनिस टूर्नामेंट के नाम से जाना जाता था। इसके बाद 1968 में इसका नाम यूएस ओपन पड़ा।
बनारस में कोयला बाजार के पास हसनपुरा नाम की एक बस्ती है। बेहद संकरी गलियों और खुली हुई नालियों वाली इस बस्ती में बुनकर समुदाय के हजारों परिवार रहते हैं। मोहम्मद अखलाक का परिवार भी इनमें से एक है। अखलाक उन चुनिंदा बुनकरों में से हैं जो आज भी हथकरघे यानी हैंडलूम के इस्तेमाल से बनारस की पहचान कहलाने वाली मशहूर बनारसी साड़ी बनाते हैं।
एक दौर था जब बनारस की गली-गली में हुनरमंद बुनकरों के हथकरघों की आवाज गूंजा करती थी। लेकिन वक्त के साथ हथकरघों की वह आवाज पावरलूम के शोर में कहीं खो गई। आज हालत ये है कि हसनपुरा में रहने वाले करीब दो हजार बुनकरों में से अखलाक जैसे बमुश्किल 10-12 बुनकर ही बचे हैं, जो अब भी हैंडलूम का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस मोहल्ले के बाकी सभी बुनकर हैंडलूम को छोड़कर पावरलूम अपना चुके हैं। पूरे बनारस की बात करें तो बुनकरों की कुल आबादी में से दस फीसदी ही अब ऐसे हैं जो हैंडलूम चलाते हैं।
हाथ से बनी जिस बनारसी साड़ी की कीमत हजारों और लाखों रुपए तक होती है, जिसे पहनने की हसरत बड़ी-बड़ी फिल्मी अभिनेत्रियों को होती है, जिस साड़ी की चर्चा देश के सबसे बड़े अमीर घरानों में होने वाली शादियों में भी होती है, उसे बनाने वाले बुनकर लगातार हैंडलूम से दूर क्यों होते जा रहे हैं?
इस सवाल के जवाब में मोहम्मद अखलाक कहते हैं, ‘हैंडलूम पर एक साड़ी दस से बीस दिनों में तैयार होती है, जबकि पावरलूम में एक दिन में तीन साड़ियां तैयार हो जाती हैं। दूसरा, हैंडलूम पर बनी एक साड़ी की कीमत कम से कम दस हजार रुपए होती है, जबकि पावरलूम पर वैसी ही साड़ी सिर्फ तीन सौ रुपए में बन जाती है। हालांकि, पावरलूम पर साड़ियां नकली रेशम की होती है और कारीगरी में भी इनकी हैंडलूम की साड़ी से कोई तुलना नहीं हो सकती, लेकिन इतनी बारीक नजर कम ही लोग रखते हैं। ग्राहक को सस्ता माल दिखता है तो उसकी ही मांग ज्यादा होती है। बुनकर को तो सिर्फ मजदूरी मिलती है। हाथ से बनी महंगी साड़ियों पर भी उसे उतनी ही मजदूरी ही मिलती है जितनी पावरलूम की सस्ती साड़ियों पर।’
बनारस में बुनकरों के अधिकारों के लिए लगातार सक्रिय रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता मनीष शर्मा हैंडलूम के खत्म होते जाने के लिए सरकारों को भी जिम्मेदार ठहराते हैं। वे कहते हैं कि हैंडलूम जैसे लघु उद्योग को संरक्षण देना सरकार की जिम्मेदारी होती है। ये सिर्फ हुनर को बचाने का ही मामला नहीं है बल्कि रोजगार का भी सवाल है। देश की बड़ी आबादी लघु उद्योगों पर ही निर्भर है।
मनीष कहते हैं, ‘अटल बिहारी के प्रधानमंत्री रहते हैंडलूम की कमर टूटना शुरू हुआ। उस दौर में 1400 ऐसे उत्पादों को बनाने की अनुमति बड़े पूंजीपतियों को दे दी गई जो पहले तक सिर्फ लघु उद्योग में ही बनाए जा सकते थे। हैंडलूम पर बनने वाली बनारसी साड़ी भी इनमें से एक थी। इस फैसले के साथ ही ये काम पावरलूम पर होने लगा। इससे साड़ियों का प्रोडक्शन तो बढ़ गया, लेकिन हैंडलूम का हुनर जानने वाले लाखों बुनकर अपना पुश्तैनी काम छोड़ने पर मजबूर हो गए। जो गिने-चुने बुनकर अब भी ये काम कर रहे हैं उनकी स्थिति भी बेहद चिंताजनक बन पड़ी है।’
मोहम्मद अखलाक जैसे बुनकर जो अब भी हैंडलूम का काम कर रहे हैं वे आज किस स्थिति में हैं? यह सवाल करने पर अखलाक कोई जवाब नहीं देते और चुपचाप अपने उस कमरे का दरवाजा खोल देते हैं जहां उनके हैंडलूम रखे हुए हैं। ये कमरा ही सारे सवालों का जवाब दे रहा है। धूल की चादर ओढ़े तीन हथकरघे यहां सुस्ता रहे हैं, जिन पर मकड़ियों के जाल बन गए हैं। आधी बनी हुई एक साड़ी अब भी एक हथकरघे से लिपटी हुई है जिसे अखलाक ने मार्च में बनाना शुरू किया था। लेकिन लॉकडाउन ने उनके काम को इस हद तक प्रभावित किया कि इस अधूरी साड़ी को पूरा करने भर का ताना-बाना भी वो जुटा नहीं सके।
बहुत से लोगों को यह जानकारी शायद न हो कि ‘ताना-बाना’ शब्द असल में हथकरघे से ही निकला है। इस करघे पर रेशम के जो धागे सीधे और तने हुए लगते हैं उन्हें ताना कहा जाता है और जो धागे इन्हें आपस में बुनते हैं उन्हें बाना कहा जाता है। ताना और बाना जब आपस में सटीक बुनावट में बैठते हैं तो ही एक मजबूत साड़ी या कपड़ा तैयार होता है। हथकरघे से निकल कर ‘ताना-बाना’ शब्द तो मुहावरा तक बन गया, लेकिन असल में हथकरघा चलाने वालों का पूरा ताना-बाना ही लगभग बिखर चुका है।
बीते बीस सालों में बुनकरों की एक बड़ी आबादी यह काम हमेशा के लिए छोड़ चुकी है और मामूली मजदूरी करने को मजबूर हो गई है। एक बड़ी आबादी ऐसी भी है जिसने हैंडलूम छोड़कर पावरलूम अपना लिए। लेकिन अब इन लोगों पर भी अस्तित्व का संकट आ गया है। लॉकडाउन ने पहले ही बुनकरों की हालात बेहद खराब कर रखी है, ऊपर से उत्तर प्रदेश सरकार ने बुनकरों को मिलने वाली बिजली सब्सिडी समाप्त करने का फैसला कर लिया है। मनीष शर्मा कहते हैं, ‘अगर सब्सिडी खत्म हो गई तो तय मानिए कि बुनकर समुदाय हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।’
कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार बनारस में आज करीब सवा चार लाख बुनकर हैं। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए साल 2005 में बुनकरों को बिजली में छूट मिलना शुरू हुआ था। ये वही दौर था जब पावरलूम तेजी से हैंडलूम को पछाड़ रहे थे और बुनकर एक-एक कर पावरलूम अपना रहे थे। बनारस के बुनकर बाहुल्य जैतपुरा में रहने वाले अबुल हसन बताते हैं, ‘बुनकरों के लिए बिजली का एक फ्लैट रेट तय था।
शुरुआत में ये रेट एक मशीन का 65 रुपए प्रति माह था। बीच-बीच में ये बढ़ता भी रहा और आज लगभग 150 रुपए प्रति माह है। लेकिन अब सरकार का कहना है कि बीती जनवरी से ही सभी बुनकरों को बिजली का बिल यूनिट के हिसाब से देना होगा और करीब 7 रुपए एक यूनिट का रेट होगा। अगर सरकार ये फैसला वापस नहीं लेती तो हमें ये काम छोड़ना पड़ेगा।’
अबुल हसन के पास कुल सात पावरलूम हैं। इनका जनवरी से लेकर मार्च तक का बिजली का बिल सवा लाख रुपए आया है और मार्च से ही इनकी बिजली कटी हुई है। अबुल बताते हैं, ‘जिस दिन देश भर में जनता कर्फ्यू लगा था, उसके अगले ही दिन मेरी बिजली काट ली गई थी। उसी दिन से सारा काम ठप पड़ा हुआ है।’
बनारस की जिन गलियों से पूरा दिन पावरलूम की आवाजें उठती थीं, इन दिनों उन सभी गलियों में लगभग सन्नाटा पसरा हुआ मिलता है। इस सन्नाटे को तोड़ते कुछ पावरलूम अब भी चल रहे हैं, लेकिन उनकी संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है। कई बुनकरों की बिजली काट ली गई है और कई ऐसे हैं जिनके यहां बिजली का बिल दो से तीन लाख रुपए तक आया है। महीने का ज्यादा से ज्यादा 25-30 हजार कमाने वाले बड़े बुनकर भी इतना भारी बिल कैसे चुकाएंगे, वह भी तब जब पिछले कई महीनों से काम बंद पड़ा है, ये लोग खुद भी नहीं जानते।
बाकराबाद के रहने वाले बुनकर अनीर-उर-रहमान के पास अपने सात पावरलूम हैं लेकिन सभी पूरी तरह से बंद पड़े हैं। घर का खर्च चलाने के लिए अनीर अब अपने कारखाने के दरवाजे पर ही पान की दुकान लगाने लगे हैं। वे बताते हैं, ‘हमारे पास कच्चा माल खरीदने का भी पैसा नहीं है। लॉकडाउन के समय से ही काम पूरी तरह बंद है। अब बिजली का जो रेट तय हुआ है उसके बाद तो इस धंधे में मजदूरी भी नहीं निकलेगी। ये सारी पावरलूम मशीनें हमें कबाड़ के भाव बेचनी पड़ेंगी, अगर बिजली बिल पर सरकार ने फैसला वापस नहीं लिया।’
सरकार ने बिजली की जो नई दरें तय की हैं, उनके अनुसार भुगतान बुनकरों ने अब तक नहीं किया है। स्थानीय बुनकर नोमान अहमद कहते हैं कि बुनकरों के लिए ये भुगतान करना मुमकिन भी नहीं है। वे बताते हैं, ‘जिस बुनकर के पास एक पावरलूम है वह पूरे महीने में ज्यादा से ज्यादा 6-7 हजार रुपए बचा पाता है। वो भी तब जब वो अपने पावरलूम पर मजदूरी भी खुद करता है। अब अगर नई दरों से बिजली का बिल देना होगा, तो एक पावरलूम का महीने का बिल ही करीब चार हजार रुपए आएगा। ऐसे में बुनकर कैसे जिंदा रह पाएगा।’
बुनकर समाज में सिर्फ वे ही लोग शामिल नहीं हैं जो बनारसी साड़ी या दुपट्टे बनाने का काम करते हैं। कई अलग-अलग तरह के लोग इस समाज का हिस्सा हैं जो पूरी-तरह से एक दूसरे पर निर्भर हैं। मसलन, साड़ियों पर डिजाइन बनाने वाले अलग हैं जिन्हें नक्शेबंद कहा जाता है। ये लोग भी पीढ़ियों से मशहूर बनारसी डिजाइन बनाने का काम करते आ रहे हैं।
इनके अलावा वे लोग हैं जिन्होंने अपने पूर्वजों से नक्शेबंद के बनाए गए डिजाइन को उस गत्ते पर उतारने का हुनर विरासत में लिया है जो हैंडलूम पर चढ़ता है और जिससे यह डिजाइन साड़ियों पर उतरता है। फिर रेशम पर रंग चढ़ाने वाले अलग हैं, ताना-बाना बेचने वाले अलग और हैंडलूम खराब होने पर उसकी मरम्मत करने वाले अलग। इस सबके बाद गद्दीदार अलग हैं जो बुनकरों के माल को खरीद कर आम ग्राहक तक पहुंचाते हैं। ये सब लोग ही बनारसी साड़ी तैयार करने वाले समाज का ताना-बाना कहे जा सकते हैं। ये पूरा समाज ही आज अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है।
मनीष शर्मा कहते हैं, ‘पहले नियोजित तरीके से हैंडलूम खत्म किए गए। हथकरघे अब बहुत खोजने से ही कहीं मिलते हैं। अब बड़े पूंजीपतियों के हित साधने के लिए पावरलूम को भी खत्म किया जा रहा है। ये फैसला एक झटके में सिर्फ लाखों बुनकरों को ही हमेशा के लिए खत्म नहीं करेगा बल्कि सदियों पुरानी बनारस की पहचान को ही हमेशा के लिए मिटा देगा। एक पूरी संस्कृति आज विलुप्त हो जाने के मुहाने पर खड़ी है और अगर जनता ने बुनकरों की आवाज नहीं उठाई तो बनारस के बुनकर सिर्फ इतिहास में पढ़ाए जाएंगे।’